Wednesday, October 7, 2009

दीदीसी को मिली एक और जिम्मेदारी……………

दीदीसी की आज शादी हो गई। परिवार वालों ने उसे विदा कर अपनी जिम्मेदारियों से हाथ धो लिया। सामाजिक परम्पराओं को निभाते हुए धूमधाम से उसकी शादी हुई। शादी का आयोजन भव्य तरीके से किया गया। मेहमानों में मुख्य आकर्षक सांसद कृष्णा तिरथ थी। इस भव्य आयोजन पर लाखों रूपये खर्च किये गये। सभी खुश थे कि सामाजिक प्रतिष्ठा रह गई।
कहने को दीदीसी का परिवार बहुत बड़ा है । सामाजिक प्रतिषेठा भी है। पैसे की भी कोई कमी नही है लेकिन कैसे कटता है दीदीसी के दिन इसे कोई नही समझ सकता। माँ बाप के गुजरने के बाद अपनी बहनों को कभी इसकी कमी महसूस नहीं होने दी। बड़ी बहन की पहले ही शादी हो चुकी है।अब तक घर की पूरी जिम्मेदारी दीदीसी पर थी। छोटा भाई और दो छोटी बहने यही उसका वास्तविक परिवार है। बाकी सब नाम के है। इस छोटे से परिवार की परवरिश में दीदीसी ने कभी अपने बारे में नहीं सोचा। आज भी उसकी सबसे बड़ी चिन्ता इस परिवार के लिए है।
दीदीसी से हमारी मुलाकात आज से दो साल पहले जिया सराय में हुई थी। वह रोज करीब तीन घंटा सफर कर के क्सास के लिए आती थी। क्लास के बाद उसे घर पहुँचने की जल्दी होती थी। कहती थी- पता नही बच्चों ने खाना खाया या नहीं । घर की सारी जिम्मेदारी दीदीसी पर थी। चाहे उनको खिलाने की जिम्मेदारी हो पढ़ाने की या फिर घर के केस मुक़दमों की। सभी काम पूरी तत्परता से करती थी। वह चाहती थी कि पहले जमीन का विवाद सुलझ जाय फिर शादी करेगी। लेकिन घर वालों ने उसकी एक न सुनी। समाज की नजर में इस परिवार की जिम्मेदारी उसके ताऊ जी पर थी। उनको इस बोझ से छुट्टी लेना था।
दीदीसी को आज ससुराल के रूप में एक और जिम्मेदारी मिली। उसे खुश होना चाहिए लेकिन वह चिंतित है। अब उसे पति सास ससुर और देवर ननद के रिश्ते को समझना होगा। लेकिन सवाल है कि जिन भाई बहनों को वह एक पल भी अपने से दूर नहीं होने देती थी उसके बिना कैसे रह पायेगी ? इससे भी बड़ा सवाल है कि उसके भाई बहन कैसे रहेंगे दीदीसी के बिना ?.....................

Monday, October 5, 2009

सबसे अच्छी चीज जो मैं भूल गया........

03 अक्टुबर 09
बचपन में मैं एक कव्वाली गाया करता था –हम घर से चले किताब ले स्कूल का रास्ता भूल गये। आज मैं दीदीसी की शादी गया। वहां का इंतजाम देखकर मैं स्तब्ध था। शादी का ऐसा भव्य सेट देखकर मैं पहली बार देख रहा था। बचपन की वो कव्वाली मुझे फिर याद आई। सभी अपने अपने तरीके से शादी का आनंद ले रहे थे। कोई मस्ती में भंगड़ा कर रहा था कोई मेहमानो का स्वागत को तैयार था। कोई खाने पीने की व्यवस्था कर रहा था तो किसी पर शादी को सुचारू रूप से कराने की जिम्मेदारी थी ।
मैं गजेन्द्र के साथ फोटोग्राफी कर रहा था। रूबी के बाउ जी भी हमारे साथ थे। पहली सबसे अच्छी बात बाउ जी को दीदीसी से मिलाने की थी जो मैं भूल गया। दूसरी अच्छी बात जीजीसा से मुलाकात करना याद नही रहा। कव्वाली यहीं पूरी नही हुई। शादी हो रही थी मंत्रोचारण पढ़े जा रहे थे। सिन्दूर दान का समय आया और मैं फोटो लेना भूल गया। विधिवत शादी संपन्न हुई दूल्हा दूल्हन ने खाना खाया। दीदीसी की विदाई का वक्त आया और मैं वहां नही था। -- Akash Kumar