हमारी क्लास के कुछ छात्र ऐसे हैं जो अपने आप को वरिष्ठ पत्रकार की श्रेणी में रखते हैं। इसे पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता। उनलोगों में एक बड़ा पत्रकार बनने के कई सारे गुण है,लेकिन उस गुण को कैसे निखारा जाए ये कला उनको नहीं आती। ये छात्र अपने-आप में इतने मगन होते हैं कि बाकी छात्र-छात्राओं को वे मजाक का विषय समझते हैं।
समाज कल्याण, नारी स्वतंत्रता और आम आदमी की सदा दुहाई देने वाले ये पत्रकार क्लास में ही अपनी बात को झुठा साबित कर देते हैं। जब कोई लड़की क्लास में कुछ बोलना चाहती है, किसी बात का विरोध करना चाहती है तो इन बुद्धिजीवी पत्रकारों के सत्ता पर संकट मंडराने लगता है। मैं इसे कमजोर मानसिकता का ही एक रूप मानता हूं। हमारे प्रधान सर कहते हैं कि सबको अपनी बात कहने का हक़ है। हमें सभी को सुनना चाहिए। किसी से हमारी असहमति हो सकती है इसके बावजूद उसे अपनी बात पूरी करने की आज़ादी है। लेकिन इन बातों का हमारी वरिष्ठ बिरादरी पर कोई असर नहीं होता।
क्लास में कुछ छात्र-छात्रा चुप रहते हैं। उनके चुप रहने का कारण उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि होती है। उनको बचपन से कुछ कहने कुछ बोलने से रोका जाता है। ऐसे छात्रों को क्लास में सहयोग, समर्थन और प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है। उन्हे उम्मीद होती है कि क्लास में दोस्ताना माहौल मिलेगा, लेकिन यहां तो गुटबाजी शुरू हो जाती है।