Thursday, November 25, 2010

काम को सलाम....

यहां लोग तरह तरह की बातें करते हैं...जैसे कुछ लोग कहते हैं कि समय बदल रहा है...लोग बदल रहा है..लेकिन आज बिहार का रहने वाला हर आदमी कहेगा कि बिहार बदल रहा है...बिहार के इस बदलाव की कहानी लंबी भले ना हो दिलचस्प जरूर है...दिलचस्प इसलिए कि कुछ दिनों पहले लोग बिहार जाना पसंद नहीं करते थे...बिहार को अपहरण मर्डर और भ्रष्टाचार का गढ़ समझते थे...लेकिन आज लोग कुछ पोजिटिव बातें भी करते हैं...मसलन लड़कियां घरों से निकल रही हैं....महिलाओं का सशक्तीकरण हो रहा है...रोजगार के थोड़े ही सही अवसर बढ़ रहे हैं....सड़कें अच्छी हुई थी...एक जुमला जो अक्सर लोग कहा करते थे कि झारखंड से बिहार में घुसते ही पता चल जाता था...उसके उबड़खाबड़ सड़कों के कारण..लेकिन अब ऐसा नहीं है...और ऐसा भी नहीं है कि बिहार का कायापलट हो गया है...चीजें बदल रही है..जो साकारात्मक है...और ये सम्भव हुआ है पिछले पांच सालों के दौरान...लोगों ने इस काम ईनाम भी दिया है...और नीतीश कुमार फिर से सत्ता में आ गये हैं...लेकिन अब उन्हें पहले से और बेहतर काम करना पड़ेगा..तभी लोगों के विश्वास को सम्मान मिलेगा......

Friday, October 15, 2010

दिल्ली तैयार है....

राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी को लेकर कल तक आलोचना झेल रही आयोजन समिति का उत्साह आजकल सातवें आसमान पर है...ऐसा हुआ है गेम के भव्य ओपनिंग की वजह से...कॉमनवेल्थ गेम की ओपनिंग की तारीफ भारतीय मीडिया ही नहीं विदेशी मीडिया ने भी जमकर की है....ट्वीटर से लेकर फेसबुक जैसे सोशल वेबसाइट पर भी खुब सराहा गया...उसका नतीजा सामने आ गया है..खिलाड़ी भी पूरे उत्साह के साथ देश के लिए सोना जीत रहे हैं...खिलाड़ियों के प्रदर्शन से उत्साहित और आयोजन को मिली तारीफ से उत्साहित शीला दीक्षित दिल्ली को ओलम्पिक के लिए भी तैयार मानती है...साथ ही ये दावा कर रही है कि हम 2020 में ओलम्पिक खेल की मेजबानी करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं…मुख्यमंत्री साहिबा की दावेदारी में कितना दम है ये तो खेल के पूरा होने के बाद ही दिखेगा...क्योंकि दबी जुबान से ये भी खबर आ रही है कि गेम के कारण दिल्ली पर भारी कर्ज का बोझ पड़ा है..और उसका सीधा असर दिल्लीवासियों के साथ साथ दूसरे राज्यों से आये लोगों पर भी पड़ेगा...क्योंकि गेम की वजह से पहले से ही बाहरी लोगों को बाहर किया जा रहा है....और अगर देश ओलम्पिक की मेजबानी को भी तैयार हो जाये तो कहना मुश्किल नहीं कि ऐसा लोगों का दशा और खराब होगी...लेकिन फिलहाल हमें पूरी तरह मेहमाननवाजी का लुफ्त उठाना चाहिए..यही हमारी प्राथमिकता है...बाकी रही शिकवे शिकायतें और आलोचना की बात तो वो तो चलती ही रहेगी....

Saturday, October 9, 2010

मेरा मकसद गलत है क्या ?

एक सवाल मन को परेशान करता है...उस सवाल का यूं परेशान करना जायज भी है....क्योंकि जिंदगी खा पी कर चले जाने का नाम नहीं है....इसका एक मकसद होता है...ये मकसद सभी के लिए अलग अलग होता है...कभी कभी दो लोगों का मकसद एक हो सकता है....ये मकसद छोटा और बड़ा भी होता है....किसी का मकसद देश का प्रधानमंत्री बनने का तो किसी का दुनिया का सबसे ज्यादा पैसे वाला आदमी बनने का हो सकता है....ये उसकी क्षमता और महत्वकांक्षा पर निर्भर करता है...अगर सिकंदर की महत्वकांक्षा पूरी दुनिया पर राज करने की थी....तो ये उसकी क्षमता और उसका विजन था....उसी तरह अगर किसी का मकसद अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर बनाने की है तो बहुत बड़ा हाथ उसकी क्षमता और महत्वकांक्षा का है.....अब यहां एक सवाल उठता है कि कौन नहीं चाहता कि उसके पास ढ़ेर सारा पैसा हो....कौन नहीं चाहेगा कि उसके बच्चे दुनिया के सबसे अच्छे संस्थान से पढ़ाई करे...लेकिन ये उसका सपना होता है...ये उसकी इच्छा होती है...मैं कहुंगा कि मकसद और सपना में फर्क है....और कोई मामूली फर्क नहीं है...सपना मेरा हो सकता है कि मैं ऑफिस मारूती इस्टीम में जाऊं....लेकिन मेरा मकसद ये नहीं है कि मेरे पास ढ़ेर सारा पैसा और महंगी गाड़ी हो....सपना हो सकता है कि मेट्रो सिटी में एक शानदार मकान हो...लेकिन मकसद ये नहीं है...मकसद तो गांव में एक छोटे से घर में रहने की है...जहां खिड़की से ताजा हवा का झोंका हर रोज चेहरे से आकर टकराये...जहां सूरज की पहली किरण खिड़की के रास्ते मेरा माथा चूमे....अब सबसे अहम सवाल कि जब मुझे मेरा मकसद पता है तो देश की राजधानी में क्या कर रहा हूं...तो इसका जवाब मेरे पास है....यहां मीडिया के अलग-अलग ट्रेंड और नये रूप से दो चार हो रहा हूं.....क्योंकि आने वाले दिनों में रिजनल मीडिया का बोलबाला होगा....आज जो खबरें धड़ल्ले से बिकती हैं...उसकी टीआरपी कम होने वाली है....और जो वास्तव में खबर होती है...जिसका नाता मास से होता है...वैसी खबरें ही दिखायी सुनाई और छपी होंगी.....ऐसे में मेरा मकसद दूर गांव में रहकर पत्रकारिय जीवन का निर्वाह करना है..तो क्या ये गलत है ?



Tuesday, August 24, 2010

ये हमारे देश में क्या हो रहा है ?

ये अपने देश में क्या हो रहा है?….बात झारखंड से शुरू करते हैं...जहां के लगभग 2 हजार किसानों ने अपनी जिंदगी से तंग आकर सुप्रीम कोर्ट से मौत की मांग कर दी...बुदेंलखंड में लोग घास की रोटी खाने को मजबूर है...जहां हो रही मौत की खबर राष्ट्रीय पटल पर नहीं आ पाती....ऐसे नाजूक हालात में भी माननीय सांसद अपना वेतन बढ़ाने में लगे हैं...और बेशर्मी देखिए...वेतन में तीन सौ फीसदी की बढ़ोतरी भी उन्हे कम लग रहा है....वहीं दूसरी औऱ दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने गरीबी की एक नई परिभाषा दे दी है...जिसमें 70 रूपये प्रतिदिन कमाने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे नहीं आते....
आज आम गरीब लोगों की जान इतनी सस्ती हो गई है...कि सैकड़ों लोगों की मौत की चीख तबतक सुनाई नहीं पड़ती...जबतक पूरे देश में सरकार की थू थू नहीं होने लगे...बंगलौर शिविर में भी तो यही हो रहा है...लोग बदहाली में जान दे रहे हैं लेकिन सरकार इसे सामान्य मौत बता कर कन्नी काट रही है.....ऐसे में अगर कोई आदमी तंग आकर हथियार उठा लेता है...तो हम एक साथ उसे गलत करार दे देते हैं...मैं भी उसे पूरी तरह सही नहीं मानता...लेकिन उसके मन में घर कर रहे असंतोष को समझने की जरूरत है...क्योंकि ये असंतोष देश के करोड़ो मन में बारूद का रूप ले रहा है...

Monday, August 9, 2010

सवाल देश की इज्जत का

“दुअरा" पर आयेल बरात तअ समधी के लागल हगास”…......वाली बात राष्ट्रमंडल खेल के लिए बिल्कुल फिट बैठती है.....इसका आयोजन 3 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक होने वाला है
यानी लगभग 50 दिन और बच रहे हैं....शहर के हालात देख कर ऐसा लगता है....जैसा सारा काम एक दिन में पूरा कर लिया जाएगा...यानी समय कम है और काम ज्यादा...
काम ज्यादा होने से और इसे समय पर पूरा करने के दबाव में पुख्ते काम की गारंटी
नहीं दी जा सकती....ऐसे में एक और कहावत याद आ रहा है....”हड़बड़ी के बिआह कनपटी में सेनूर”....मुख्यमंत्री का अल्टीमेटम मिल चुका है कि एक सितम्बर से पहले काम खत्म कर देना है...ऐसे में निर्माण कार्य में लगे कंपनियों ने रफ्तार तेज कर दी है
हो भी क्यों ना सवाल देश की इज्जत का जो है
इसकी वजह से जो काम 100 रूपये में होने वाला था...उसे 200 रूपये देकर पुरा किया
जाएगा...ये पैसा आएगा आपकी औऱ हमारी जेब से.....क्योंकि “हम आम आदमी के जेब में ही तो देश का सारा पैसा पड़ा है”...सरकार जब चाहती है निकाल लेती है...अलग-अलग तरीक से.....

Monday, August 2, 2010

कल का अच्छा आज है बुरा !

अच्छा आदमी किसे कहते हैं ये आज तक मुझे समझ नहीं आया…लेकिन जो बेसिक परिभाषा मैं बचपन से सुनता आया हूं...उसके मुताबिक अच्छे आदमी की परिभाषा गढ़ी जा सकती है...लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये परिभाषा हर काल खंड में सार्थक हो...जैसे अगर हम मानते हैं कि शराब पीना बुरी बात है...लेकिन क्या ये हमारे इलीट क्लास के कल्चर का हिस्सा नहीं है ?

क्या लोग इसे पीने के बाद खुद को हाई क्लास नहीं मानते ? यानी शराब पीना अब गलत काम नहीं रहा..क्योंकि आज ये सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है...ये छोटे शहरों कस्बों से निकल कर सूदूर गांव तक पहुंच गया है...अब तो गांव में भी जो लोग बीयर नहीं पीते उसे पिछड़ा और पुराने ख्यालात वाला समझा जाता है...
लगभग यही हाल लड़कियों के मामले में भी फिट बैठता है...जिसके पास कोई गर्लफ्रेंड नहीं है उसे असफल और बेवकूफ समझना आम बात हो गयी है॥ हैरान तो लोग उस पर भी है जो सिर्फ एक लड़की के साथ है...और उसके सिवा किसी के बारे में सोचता भी नहीं है....
ये बात यहीं खत्म नहीं होती...मां बाप की आज्ञा मानने वाला, टीचर को इज्जत देने वाला, दोस्तों की मदद करने वाला आदमी.... आज की नयी परिभाषा में अच्छा आदमी नहीं है...साफ शब्दों में कहें तो आज जो बाहरी तौर से स्मार्ट दिखे, जो जिंदगी में कपड़ों की तरह लड़कियां बदलता हो...देर रात बार में पार्टी करता हो औऱ जो रिश्तों को मजबूरी समझता हो, वही अच्छा आदमी है...

Sunday, August 1, 2010

ये दुर्घटना ही थी....

बारिश के बहाने आपने अब तक कई सारे काम किये होंगे….कुछ अच्छे कुछ बुरे...कुछ सोचे कुछ बिना सोचे...उनमे बहुत कुछ आप भूल गये होंगे मैं भी भूल जाता हूं....लेकिन कुछ ऐसी घटना और दुर्घटना भी हो जाती है...जिसे हम कभी भूल नहीं पाते...ऐसी ही एक दुर्घटना पिछले शनिवार यानी 31 जुलाई को हो गई...इसे मैं पूरी तरह दुर्घटना मानता हूं....लेकिन इसमें मेरा नुकसान नहीं हुआ उल्टे फायदा ही हुआ...लेकिन मानवता के नाते इसे मैं अपना नुकसान ही मानता हूं....
दफ्तर से निकला तो बारिश शुरू हो गई...लेकिन अच्छा हुआ कि हमारे एक सीनियर जो मेरे साथ ही नाइट शिफ्ट में नौकरी करते हैं...ने हमें अपनी कार में चलने का ऑफर दे दिया.....कार में हम कुल मिलाकर पांच लोग थे..तीन तो हम यानी मैं विकास और रणविजय..और दो हमारे सीनियर...कार में कुछ दूर चलने के बाद सिचुएशन ऐसी बनी की रणविजय ने हम सभी को पार्टी देने का ऑफर दे दिया....बाहर बारिश और तेज हो चली थी..हम रिंगरोड से मेडिकल की ओर बढ़ रहे थे...कार की ब्रेक जहां लगी...मेकडोनाल्ड का पीला वाला स्टायलिश M दिखाई दिया...मैं भी विकास और रणविजय के साथ अंदर दाखिल हो गया...काउंटर पर पहुंचते ही एक सुन्दरी ने मुस्कुराकर हमलोगों का स्वागत किया..लेकिन वो बिल्कुल प्रोफेशनल था.. इसलिए ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं थी...विकास ने बर्गर ऑर्डर किया...और कोलड्रिंक भी...बर्गर की कीमत सुनकर ही कोलड्रिंक की प्यास मिट गई....पैसे मेरे जेब से भले ना गये हों...लेकिन मन जरूर भारी हो रहा था...मैं अपराध बोध महसूस करने लगा...खुद को कोसने भी लगा कि क्यों आ धमका... वैसी जगह जो मेरी लिए नहीं थी..हमें यकीन नहीं हो रहा था कि हम उसी देश में थे जहां की 77 फीसदी आबादी रोजाना 20 रूपया से कम पर गुजारा करती है..मैकडोनाल्ड से निकलने के बाद बर्गर के स्वाद ने जरूर मन की करवाहट को थोड़ा दूर किया...लेकिन अगर लंबे समय तक इस दुर्घटना को याद रखूंगा तो सिर्फ 85 रूपये के बर्गर के लिए.....

Friday, July 2, 2010

मासूम मासूमियत भरी

संडे नाइट में ड्यूटी थी...सुबह से घर पर ही था...पिछली रात पार्टी के बाद थोड़ी सुस्ती थी....दोस्तों में संतोष और हेमंत ही थे....पवन रोज की तरह लेपटॉप पर व्यस्त था...पेपर पढ़ते हुए दोस्तों से बात भी हो रही थी...साथ ही खाना बनाने की प्लानिंग भी....लेकिन कोई भी जल्दी खाने को तैयार नहीं था..शायद पिछली रात की पार्टी का असर गया नहीं था....हेमंत थोड़ा विचलित लग रहा था..और बार-बार बदरपुर जाने की जिद कर रहा था...लेकिन संतोष बिल्कुल संतोषी बना आराम से दीवाल को सजा रहा था...क्योंकि कल उसे ये मौका नहीं मिला था..वो पार्टी में देर से आया था....उसके चार बजे तक आ जाने की उम्मीद थी लेकिन स्वतंत्रता सेनानी ने उसे ये मौका नहीं दिया.....पार्टी बर्थ-डे का था...लेकिन हम लोगों में से किसी का बर्थ-डे नहीं था..असल में बर्थ-डे हमारी फ्रेंड का था....बातों बातों में हमलोगों ने खाना भी खा लिया...फिर भी शाम होने में काफी समय शेष था...मैंने फिल्म देखने की इच्छा बतायी...संतोष भी तैयार हो गया....ज्यादा सोचविचार करने की जरूरत नहीं पड़ी...पहले से ही मासूम देखने की सोच रहा था...कुछ देर बाद हमलोग टैपटॉप से चिपक गये...माहौल बहुत ही हल्का...हल्का इसलिए कि बैठने में कोई शिष्टाचार नहीं था...हां फिल्म देखने में जरूर गंभीरता थी...फिल्म शुरू हुई और कब हम सभी उसमें पूरी तरह डूब गये पता नहीं चला....फिल्म का हर पक्ष लाजवाब लगा..कहानी दबरदस्त संगीत बेजोड़,अभिनय दमदार यानी भरपूर मनोरंजन..यहां भरपुर मनोरंजन कहना आपको खटक सकता है...क्योंकि आपको लगेगा कि मासूम तो एक गंभीर विषय की फिल्म है...तो इसमें मनोरंजन कैसा ? तो मैं कहुंगा मनोरंजन केवल कॉमेडी एक्शन और प्रेम कहानियों में नहीं होता.....फिल्म में पूरी तरह डूब चुका था...कहानी और पात्र की संवेदनाओं ने मुझे पूरी तरह जकड़ लिया था...बीच-बीच में दोस्तों की कंपनी में जबरदस्ती हंसी आती लेकिन वो टिक नहीं पाती थी....महीनों बाद एक अच्छी फिल्म देख रहा था....मैं चाहुंगा कि ये फिल्म आप सभी जरूर देखें....शेखर कपुर ने शबाना आजमी और नसीरूद्दीन शाह को लेकर एक अच्छी फिल्म बनाई है...इसमें बाल कलाकार के रूप में उर्मिला और युगल हंसराज ने काम किया है....कम पात्रों और कम लागत में बेहतरीन फिल्म है....-- Akash Kumar sigh--

Wednesday, June 30, 2010

मजबुरी...

कई दिनों से सोच रहा हूं कि पूंछू तुमसे एक सवाल.....सवाल नहीं कोई नया, अनोखा...जिसपे तुम भी करो सवाल....नहीं सवाल ये जटिल जरूरी....पर मत समझों गैरजरूरी....किया सवाल तो जवाब भी चाहुं...नहीं मिला तो क्या मैं जानूं...क्या मैं जानूं क्या मैं मानूं.....कर सकता हूं जो मै ठानूं ....हो गयी बहुत बेकार की बातें....कर लें थोड़ी काम की बातें.....काम की बात जरूरी होता....जिसको करना मजबूरी होता....मजबूरी भी अच्छा होता...

Thursday, May 20, 2010

दिल्ली में हम पांच..बनने आये पत्रकार..

आईआईटी जियासराय के विद्या में क्लास का वो पहला दिन जब मैंने तुम्हे(हर्ष) देखा था.....तुम्हारे चेहरे पर एक तेज था जो शायद बाकी बच्चों में नहीं था....उस दिन तुम क्लास में टीवी के रियलिटी शो की धज्जियां उड़ा रहे थे....तुम्हारी बातों में वजन था...और वह काफी नेचुरल लग रहा था.....एक धार थी जो आजकल के कम ही पत्रकारों में देखी जा रही है...
उस दौरान क्लास का वो दूसरा तीसरा दिन ही था.....जब रूबी से हमारी मुलाकात हुई थी....उस में भी कुछ बात थी जो असरदार थी......वो मुझे नेचुरल भी लगी और बनावटी भी.....नेचुरल लगी क्योंकि दिल्ली जैसे शहर में रहकर भी गांव की मिट्टी से उसका नाता नहीं टूटा था.....मुझे उसकी एक बात बहुत अच्छी लगी थी...एक बार उसने कहा था कि " गांव से चलते समय गांव की उन टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों,खेत खलिहानों और गांव की बदहाल सड़कों से मैंने वादा किया है कि एक दिन तुमसब की हालत को ठीक करने मैं गांव लौटूंगी " बनावटी इसलिए कि जहां वह कमजोर थी.....उसे भी अपनी जिद और व्यक्तित्व से ढ़कना चाहती थी....जो बात कई लोगों को बुरी लगती थी.....
क्लास में कुछ दिन और बीते होंगे कि एक और मित्र(गजेन्द्र) से हमारी मुलाकात हुई....उसे देखकर किसी को भी उसके भीतरी पीड़ा का अंदाजा नहीं लग सकता था....चेहरे पर आत्मविश्वास साफ झलक रहा था....उसके व्यक्तित्व में अपने प्रदेश की संस्कृति उसे दूसरे से बेहतर और जीवंत बनाये हुए थे....उसमें एक आग दिखी थी जो वर्षों से धधक रही थी.....तब से कई बार मुसलाधार बारिश हुई लेकिन उस आग के सामने नतमस्तक होकर चली गयी.....वो आग उसमें आज भी है लेकिन उसकी तपिश थोड़ी कम पड़ गयी है.....या हो सकता है किसी गरम हवा का इंतजार हो जो उस लौ को फिर से एक दिशा दे सके......हमारी मित्रमंडली में एक नाम ऐसा है जिसका जिक्र किये बीना कहानी पूरी नहीं हो सकती है....उसका नाम है मंजू जो इतनी नेकदिल, गंभीर अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाली थी कि कोई भी उससे नफरत नहीं कर सकता था... उसकी आंखे बहुत ही शांत और गहरी थी ....जिसमें छुपे दर्द को समझना किसी के बस मे नहीं था....उसकी जिन्दगी इतनी संघर्षशील और त्यागवाली थी कि कोई भी उसे अपने जीवन का आदर्श बना सकता है.....उसे अपने खुद के जीवन से कोई मोह नहीं था....वो अपनी बहन-भाईयों के लिए जी रही थी....वो एक लड़ाई लड़ रही थी...लगातार लड़ रही थी...परिवार से, समाज से, कानून से, रूढ़ीवादी परम्पराओं से और काफी हद तक अपनेआप से.....उसे लड़ाई का परिणाम नहीं मालूम था...फिर भी वो लड़ रही थी....उसकी लड़ाई आज भी जारी है....और शायद जीवनभर जारी रहने वाला है....लेकिन इस लड़ाई में वो अकेली थी....हमलोगों में से किसी ने भी उसकी लड़ाई में मोर्जा नहीं सम्भाला....लेकिन उसे हमेशा उम्मीद थी कि जब हम लोग पत्रकार बन जायेंगे तो उसकी मदद कर पायेंगे.....
मेरे बारे में जिक्र करने लायक कुछ विशेष था नहीं.....मैं एक साधारण शरीर और दिमाग वाला संवेदनशील लड़का था....उस मित्रमंडली में मैं सबसे ज्यादा प्यार पाता था....बिल्कुल उस बच्चे की तरह जो थोड़ा मंदबुद्धि का होता है....मुझमें ना वो आग थी ना चिंगारी....तब तो मैं पत्रकारिता को ठीक से जानता भी नहीं था...मुझे मेरे मित्रों से बहुत कुछ सीखने को मिला...और आज भी मिल रहा है....उनका साथ पाकर अब मैं भी थोड़ा थोड़ा पत्रकारिता को जानने लगा हूं..........-- Akash Kumar

Monday, May 17, 2010

हवाई हमला से पहले विचार


नक्सलियों पर आज पूरे देश की नजर है......कारण कि पिछले एक महिने में इन्होंने दो बड़े हमलों को अंजाम दिया है......ऐसा इनलोगों ने नक्सल विरोधी आपरेशन ग्रीनहंट के खिलाफ किया था......इसे बदले की कार्रवाई भी कह सकते हैं......इस दो बड़े हमलों में देश के लगभग 100 जवान मारे गये......पुलिस के जवानों ने ज्यादातर लोगों की सहानुभूति पा ली......यानी यहां नक्सल अभियान कमजोर पड़ा.....पिछले कई दिनों से ऐसी खबरें भी आ रही है कि नक्सली बैकफुट पर आ गये हैं......और ऐसा हुआ है इसको गलत दिशा देने से और कुछ माओवादी विचार के नेताओं के जिद के कारण.......क्योंकि ऐसी भी खबरें है कि नक्सलियों का जनाधार कमजोर हुआ है.....यानी आदिवासी और किसानों का समर्थन नहीं मिला है....लेकिन सरकार औऱ नक्सलियों के बीच छिड़ी लड़ाई में नुकसान आदिवासियों और किसानों का ही हुआ है........
ताजा स्थिति ये है कि नक्सलियों ने दंत्तेवाड़ा और बीजापुर में हमला कर सरकार को हिला दिया है.....अब सरकार नक्सलियों के खिलाफ एयरफोर्स को लगाना चाहती है.....अगर ऐसा हुआ तो नक्सलियों का नामोनिशान मिट जाएगा......सरकार की इस कार्रवाई से उन्हें अबुझमाड़ का जंगल भी नहीं बचा पाएगा .....लेकिन इसकी पूरी सम्भावना है कि काफी संख्या में निर्दोष लोग मारे जाएंगे ......दूसरी बात है कि जिस जंगल को आदिवासी अपना घर और मंदिर समझते हैं उसका पूरी तरह सफाया हो जाएगा......इस आरपार की लड़ाई में असल मुद्दा फिर दब जाएगा .....सरकार के प्रति कुछ लोगों में फिर निराशा बढ़ेगी और वे हथियार उठायेंगे.......ये जरूर है कि थोड़े समय के लिए माहौल शांत तो हो जाएगा लेकिन लोगों के भीतर एक आग सुलगती रहेगी........ . ये सुलगती आग फिर से ज्वालामुखी ना बने इस पक्ष पर भी विचार करने की जरूरत है......

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Akash Kumar

Monday, May 3, 2010

हम कैसा समाज बना रहे हैं..

राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का एक नारा है.....सब पढ़े सब बढ़े.....बचपन में भी एक बात हर बच्चे को पता थी......पढ़ेंगे-लिखेंगे बनेंगे होशियार.......गिनती के सबक की तरह ये बात हर बच्चे दुहराते रहते थे.......मां-बाप के मन में भी ये बात रहती थी कि पढ़लिख कर हमारी औलाद देश समाज और परिवार का नाम रौशन करेगा.......बात साफ है कि शिक्षा से लोगों की उम्मीदें जुड़ी रहती है.....उन्हे लगता है कि शिक्षा से एक नये साकारात्मक समाज का निर्माण होगा.....समाज में एक नई सोच नये विचार का आगमन होगा.....समाज की जो पुरानी मानसिकता है जो रुढ़िवादी विचार है उन्हे चुनौती मिलेगा....लेकिन ये सारी कवायदें झूठी साबित हो जाती है जब एक आधुनिक समाज में प्रगतिशील पत्रकार की हत्या कर दी जाती है......वजह मामुली होती है.....एक पत्रकार जो महिला भी है......उसे समाज ने फैसले लेने का हक नहीं दिया है.....अगर दिया भी है तो उसका एक दायरा तय कर दिया गया है.....निरूपमा पाठक झारखंड के एक छोटे से जिले से दिल्ली आई.....देश के एक बड़े मीडिया संस्थान में पढ़ाई की.....एक बड़े मीडिया हाउस में नौकरी की.....यहां तक सबकुछ ठीक चल रहा था.......समस्या वहां से शुरू हुई जब उसे एक लड़के से प्यार हो जाता है...और वह शादी का अहम फैसला कर लेती है.....इस फैसले ने मां-बाप और परिवार वालों की खोखली सत्ता को हिला कर रख दिया.......बेटी का ये फैसला उन्हे इतना नागवार लगा कि परिवार वालों ने उसे सदा मौत की नींद सुला दिया.......ये सब उन्ही लोगों ने किया जिन्होंने कभी निरूपमा को लोरी गाकर सुलाया होगा......मानव संवेदना को हिला देने वाली ऐसी घटना एक ऐसे परिवार में होती है......जिसमें लोग पढ़े-लिखे है समाज में प्रतिष्ठा है..... निरूपमा इकलौती नहीं है जिसे समाज ने अपनी झूठी शान के लिए मौत की नींद सुलाया है..... ऐसी घटनायें हमेशा ये सवाल छोड़कर जाती है कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं.........फिर हमें जरूर इस बात पर ध्यान देनी चाहिए कि शिक्षा का स्वरूप क्या होगा और इसका मतलब क्या होगा.....तभी हम कह सकेंगे पढ़ेंगे-लिखेंगे बनेंगे होशियार ......

Friday, March 12, 2010

भारतरत्न के लिए सचिन बड़ा नाम

”ईश्वर क्रिकेट खेलना चाहता था कि इसलिए सचिन पैदा हुए।” यह एक क्रिकेटदर्शक का उदगार है जो सचिन के वन डे में दोहरे शतक के बाद ट्वीटर पर आयाथा। इस गौरवशाली पारी के बाद महान खिलाड़ी सुनिल गवास्कर ने कहा कि मैंसचिन के पैर छुना चाहुंगा। जिस देश में क्रिकेट को धर्म कहा जाता हो औरएक खिलाड़ी के प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा हो वहां सचिन जैसे खिलाड़ीको भारतरत्न नहीं मिलना किसी को भी खटक सकता है।इससे किसी को भी गुरेज नहीं हो सकता है कि सचिन समकालिन क्रिकेट के सबसेमहान खिलाड़ी हैं। एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोहरा शतक लगानेके बाद विश्वभर में सचिन तेंदुलकर चर्चा के विषय बन गये। देशभर से येआवाज आने लगी कि सचिन को भारतरत्न दिया जाना चाहिए। सचिन ने दक्षिणअफ्रिका के खिलाफ ग्विलियर में नाबाद दोहरा शतक लगाया था। इससे पहले वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक 194 रन का रिकॉर्ड था।महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने मुम्बई में सचिन के नाम सेसंग्रहालय बनाने की भी बात कर दी। जहां सचिन से जुड़ी यादों का संग्रहहोगा। पूर्व क्रिकेटर अजित वाडेकर, कपिलदेव, और दिलीप वेंगसरकर ने कहा किसचिन इस सम्मान के हकदार हैं। टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा भी सचिन कोभारतरत्न के योग्य मानती हैं।सचिन को भारतरत्न दिये जाने की मांग सिर्फ खिलाड़ियों और राजनीतिज्ञोंमें ही नहीं है। आम नागरिक भी सचिन को यह पुरस्कार दिये जाने के हक मेंहैं। मुनिरका के रहने वाले विजय श्रीवास्तव को खेल में रूचि नहीं है,लेकिन वे सचिन को जानते हैं। विजय का कहना है कि क्रिकेट में सचिन सेबड़ा नाम कोई नहीं है इसलिए उनको यह अवार्ड मिलना चाहिए। मुनिरका के हीपरमानंद सिंह का कहना है कि— मैं 25 सालों से क्रिकेट देख रहा हूं लेकिनमैंने ऐसा खिलाड़ी नहीं देखा। सचिन को भारतरत्न जरूर मिलना चाहिए।सुल्तानपुर के रहने वाले रणविजय ओझा भी मानते है कि अगर पुरस्कारों केपीछे काम कर रही लाँबी नहीं हो तो निश्चत रूप से तेंदुलकर को देश कासर्वोच्य सम्मान मिलना चाहिए।सचिन के प्रति ऐसी भावना और सम्मान प्रकट करने वाले लोगों की कोई गिनतीनहीं है। जिन लोगों को क्रिकेट में रुचि नहीं है वो भी सचिन की प्रतिभाके कायल हैं। सचिन को यह सम्मान एक दिन में नहीं मिला है। इस सम्मान केलिए सचिन रमेश तेंदुलकर ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कुछ आलोचकों ने तोयहां तक कहना शुरू कर दिया कि शेर बुढ़ा हो गया है। उनकी आलोचना करनेवाले भी इससे इन्कार नहीं कर सकते कि सचिन ही क्रिकेट के शेर हैं। शेरबुढ़ा नहीं हुआ ये नाबाद 200 रन की पारी के बाद साबित हो गया है। सचिन काएक लम्बा और बेदाग करियर रहा है। पूरे देश को उनपर गर्व है। सचिन ने कईमौकों पर देश का नाम ऊंचा किया है। अगर उनको भारत का सर्वोच्य नागरिकसम्मान मिलता है तो क्रिकेट का मान बढ़ायेगा और साथ ही साथ करोड़ोंक्रिकेट प्रेमियों का मान बढ़ेगा।

Wednesday, March 3, 2010

जेएनयू की हुड़दंग वाली होली


कुछ चीजें होती है जिन पर यकीन करने का मन नहीं करता लेकिन करना पड़ता है। होली वाले दिन जेएनयू कैम्पस का भी नजारा कुछ ऐसा ही था जिस पर भी आसानी से भरोसा नहीं हुआ। लेकिन ये खयाल आया कि जब होली का मौसम हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है। मस्ती में डूबे युवक-युवतियों ने जो धमाल किया उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती थी। रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे और हाय ये होली उफ ये होली जैसे गीतों पर थिरकते लोगों को कैमरे में कैद करने का मौका कोई भी चुकना नहीं चाहता था। लाल पीले काले नीले रंगों से सराबोर छात्रों को देख कर कोई भी नहीं कह सकता था कि ये जेएनयू के वही छात्र है जो भारतीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय संबंध और समाजवाद पर लंबे लंबे भाषण देते हैं रंग-बिरंगे गेटअप में झुमते नाचते लड़के-लड़कियों में अंतर करना मुशिकल था। किसी ने कुर्तो भाड़ रखे थे तो कोई उन फटे कपड़ों का डिजायन बनाये। कोई भांग पी रहा था तो किसी ने रम पी रखी थी। किसी के हाथ पिचकारी थी तो किसी के हाथ गुलाल की पोटली। यहां पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों के लिए यह अद्भूत नजारा होता है। इस उमंग और मेल-मिलाप के त्योहार का कोई भी मौका चुकनी नहीं चाहते। हमेशा दूर से ही पहचाने जाने वाले इन छात्रों को पहचानना मुश्किल था। सभी आज भारतीय रंग में घुल गये थे। मस्ती के इस अनूठे अवसर को वे लगातार कैमरे में सहेजते रहे। होली के मशहुर गीतों पर झुमते इन युवाओं को रोकना किसी के वश में नहीं था। सारे झीझक और सभी बंदिशे तोड़कर वे दिखा देना चाहते थे कि भारत को यूं ही युवाओं का देश नहीं कहा जाता। यहां छात्रों में जो उर्जा लाजवाब थी। भविष्य की सारी चिंताये भूलाकर आज सिर्फ नाचना थिरकना चाहते थे। ऐसा भी नहीं था कि इन छात्रों में मस्ती के आलम में सारी मर्यादाएं तोड़ दी हो। उनको नशे में भी अपने हद में थे। नफरत कटुता और इस तरह की सारी शिकायतों को भूलाकर लोग एक दूसरे के गले के गले मिल रहे थे। मन के अवसादों को भूलाकर उनका चेहरा चमक रहा था। होली की ऐसी सुन्दरता को जेएनयू के ही छात्र बनाये रख सकते थे जिन पर देश की कई उम्मीदें जुड़ी होती है।
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Thursday, January 28, 2010

कैसे सफल होगी हरित क्रांति

गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि देश में एक और हरित क्रांति की जरूरत है। देश में महंगाई की स्थिति को देखते हुए इस पर विचार करने की जरूरत है। लेकिन राष्ट्रपति की बात को अगले दिन ही कृषि मंत्रालय ने झूठा साबित कर दिया। गणतंत्र दिवस के अवसर पर कृषि मंत्रालय ने जो झांकी प्रस्तुत की उसमें अनाज की जगह सिर्फ फूल ही दिखाई दे रहे थे।
देश में खाद्यान्न संकट के कारण महंगाई की स्थिति बेकाबू हो रही है। सिर्फ अनाज ही नहीं दाल, सब्जी, चीनी सभी की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में कृषि मंत्रालय अनाज की जगह फूल के उत्पादन पर जोर दे रहा है। जिस देश में आधी आबादी गांव में रहती है जहां खेती प्रमुख व्यवसाय है, जहां 37 फीसदी लोग गरीब हैं, भूख से जहां लोगों की जान जाती है। उस देश में सिर्फ फूलों की खेती कुछ हजम नहीं होती। हमारे देश में गेंहू, चावल और चीनी की अच्छी पैदावार होती है। इसे झांकी में दिखाये जाने की जरूरत थी। जिससे इसे बेहतर बनाने की कोशिश हो सके । राष्ट्रपति के बयान और कृषि मंत्रालय के झांकी में विरोधाभास है। ऐसे में हरित क्रांति कैसे सफल होगी इस पर देश को सोचने की जरूरत है।

Wednesday, January 20, 2010

आगरे का सफर सुहाना भी,यादगार भी

31 दिसम्बर
साल 2009 का आखिरी दिन। दोस्तों में बहस हुई कहां जाए,क्या करें,कैसे नये साल का स्वागत करें। काफी सोच-विचार के बाद आगरा जाने का कार्यक्रम बना। मैं मुनिरका और मेरे दोस्त बदरपुर से सराय काले खां पहुच गये। वहां उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की एक बस हमारा इंतजार कर रही थी। बस की स्थिति देखकर सफर का आभास हो गया। कंडक्टर ने कहा बस ननस्टॉप है। थोड़ी देर में हम बस में सवार हो गये।
दिल्ली से निकलने में ही बस को घंटों लग गये। फिर बीच-बीच में सवारियों का आना जाना जारी रहा। किसी तरह पलवल के पास देह-हाथ सीधा करने का मौका मिला। कुरकुरे और चना-मसाला खाकर कुछ नहीं हुआ तो पराठा खाने का विचार आया।
बस वहां से चल पड़ी। हमलोगों ने बस में ही खाना शुरू किया। संतोष ने कहा-कितने का पराठा है। पराठा की कीमत सुनते ही सभी एक-दूसरे को देखने लगे। दाम सुनकर ही पेट भर गया। 15 रूपये का एक पराठा खाने के बाद रास्ते में कुछ और खाने की हिम्मत नहीं हुई। लेकिन 3 बजते-बजते सब्र टूट गया। बस के ट्रांसपोर्ट नगर पहुंचते ही एक महाशय आ धमके। उनके प्रस्ताव लुभावने लगे। उन्होंने 500 रूपये में आगरा घुमाने का ऑफर दिया। थोड़ी खींचतान के बाद 400 रूपये पर सहमति बनी। नया शहर, अजनवी लोग कम समय होने से उस महाशय के प्रस्ताव हमने मान लिये। खाने की बात पर फिर बहस हुई। एक रेस्टोरेंट के सामने ऑटो रूकी। रेस्टोरेंट का इनटीरियर देख ठगे जाने का अनुमान हो गया। वहां लगे शीशे में अपनेआप को देखकर हमलोगों ने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश की। एक अंकल जैसे वेटर ने प्रेम से मेन्यू पेश किये। आंखे व्यंजन के नाम की जगह उसके कीमत पर ऊपर-नीचे होने लगे।
यहां दोस्तों में बहस नहीं हुई। इशारों-इशारों में मेरी पसंद पर सबने मुहर लगा दी। साठ रूपये की दाल और अस्सी रुपये की सब्जी से किसको आपत्ति हो सकती थी। असल में इससे कम का कुछ था ही नहीं। सकुचाते-सकुचाते हमने बीस रोटियां खा ली। 5 रूपये की तंदूरी रोटी से पहली बार वास्ता पड़ा था।मन में बील का कलकुलेशन भी चल रहा था। डर भी था कि सलाद का दाम भी न जोड़ लिया जाए। ऊपर से वेटर की सेवा भावना के कारण दस रूपये भी देने पड़े।
लालकिला में टिकट की लंबी लाइन देखकर अंदर जाने का विचार त्याग दिये। वहां से हमलोग आगरा के लिए गये। रास्ते में ऑटो वाले ने हमें खैराती मुहल्ला दिखाया। यहां मुगल बादशाह शाहजहां खैराती का आयोजन करता थे। ताजमहल के पूर्वी गेट से हमलोगों ने प्रवेश किया। इस बीच ताज की हर खुबसुरती को कैमरे में सहेजने का काम जारी था। नोकिया 2700 मोबाइल ने भरपूर साथ दिया। देश के अलग-अलग प्रांत से आये लोगों और विदेशी सैलानियों को एक साथ देखना बहुत अच्छा लग रहा था।

शाम हो रही थी। अंधेरा घिर चला था,लेकिन ताज की खूबसूरती और इसकी चमक अदभूत था। संगमरमर के पत्थरों से छिटक रहे प्रकाश को देखना मनोनम था। नव वर्ष की इस संध्या का नजारा वहां आये प्रेमी-युगल के लिए बेहद खास होगा। मन में हजार तरह के सपने संजोये प्रेमी अपनी प्रेमिका में मुमताज महल को देखते हैं। एक-दूसरे के गले में बाहें डाले ये प्रेमी-युगल साथ रहने के कई सारे वादे करते हैं। ताज की बनावट और उसके लोकेशन को देखकर मन गदगद कर रहा था। मानो संगमरमर की सफेदी और चमक चांद का मुहं चिढ़ा रहे हो।
वापसी में एक यादगार लम्हा हमारा इंतजार कर रहा था। अंधेरा पूरी तरह घिर चुका था। शाम के 6 बजे का वक्त था। सीढ़ीयों से उतरने के बाद हमने पाया कि हमारे दो जोड़ी जूतें गायब थे। इधर-उधर तालाशी अभियान शुरू हो गया। खाली पैर लौटने से गलत नंबर के जूते में ही लौटना पड़ा। अमित और हेमंत दोनों जूते खोने के बाद एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे थे। दोनों में बहस लगातार तेज हो रही थी। उदास मन से हमलोग फिर से उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की बस में आ धमके। संतोष ने माहौल को हल्का बनने के लिए अपन नोकिया एन-72 मोबाइल पर गाना प्ले कर दिया। थोड़ी देर में माहौल शांत और वापसी का सफर शुरू हो गया।