Wednesday, June 30, 2010
मजबुरी...
कई दिनों से सोच रहा हूं कि पूंछू तुमसे एक सवाल.....सवाल नहीं कोई नया, अनोखा...जिसपे तुम भी करो सवाल....नहीं सवाल ये जटिल जरूरी....पर मत समझों गैरजरूरी....किया सवाल तो जवाब भी चाहुं...नहीं मिला तो क्या मैं जानूं...क्या मैं जानूं क्या मैं मानूं.....कर सकता हूं जो मै ठानूं ....हो गयी बहुत बेकार की बातें....कर लें थोड़ी काम की बातें.....काम की बात जरूरी होता....जिसको करना मजबूरी होता....मजबूरी भी अच्छा होता...
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