Friday, October 15, 2010

दिल्ली तैयार है....

राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी को लेकर कल तक आलोचना झेल रही आयोजन समिति का उत्साह आजकल सातवें आसमान पर है...ऐसा हुआ है गेम के भव्य ओपनिंग की वजह से...कॉमनवेल्थ गेम की ओपनिंग की तारीफ भारतीय मीडिया ही नहीं विदेशी मीडिया ने भी जमकर की है....ट्वीटर से लेकर फेसबुक जैसे सोशल वेबसाइट पर भी खुब सराहा गया...उसका नतीजा सामने आ गया है..खिलाड़ी भी पूरे उत्साह के साथ देश के लिए सोना जीत रहे हैं...खिलाड़ियों के प्रदर्शन से उत्साहित और आयोजन को मिली तारीफ से उत्साहित शीला दीक्षित दिल्ली को ओलम्पिक के लिए भी तैयार मानती है...साथ ही ये दावा कर रही है कि हम 2020 में ओलम्पिक खेल की मेजबानी करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं…मुख्यमंत्री साहिबा की दावेदारी में कितना दम है ये तो खेल के पूरा होने के बाद ही दिखेगा...क्योंकि दबी जुबान से ये भी खबर आ रही है कि गेम के कारण दिल्ली पर भारी कर्ज का बोझ पड़ा है..और उसका सीधा असर दिल्लीवासियों के साथ साथ दूसरे राज्यों से आये लोगों पर भी पड़ेगा...क्योंकि गेम की वजह से पहले से ही बाहरी लोगों को बाहर किया जा रहा है....और अगर देश ओलम्पिक की मेजबानी को भी तैयार हो जाये तो कहना मुश्किल नहीं कि ऐसा लोगों का दशा और खराब होगी...लेकिन फिलहाल हमें पूरी तरह मेहमाननवाजी का लुफ्त उठाना चाहिए..यही हमारी प्राथमिकता है...बाकी रही शिकवे शिकायतें और आलोचना की बात तो वो तो चलती ही रहेगी....

Saturday, October 9, 2010

मेरा मकसद गलत है क्या ?

एक सवाल मन को परेशान करता है...उस सवाल का यूं परेशान करना जायज भी है....क्योंकि जिंदगी खा पी कर चले जाने का नाम नहीं है....इसका एक मकसद होता है...ये मकसद सभी के लिए अलग अलग होता है...कभी कभी दो लोगों का मकसद एक हो सकता है....ये मकसद छोटा और बड़ा भी होता है....किसी का मकसद देश का प्रधानमंत्री बनने का तो किसी का दुनिया का सबसे ज्यादा पैसे वाला आदमी बनने का हो सकता है....ये उसकी क्षमता और महत्वकांक्षा पर निर्भर करता है...अगर सिकंदर की महत्वकांक्षा पूरी दुनिया पर राज करने की थी....तो ये उसकी क्षमता और उसका विजन था....उसी तरह अगर किसी का मकसद अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर बनाने की है तो बहुत बड़ा हाथ उसकी क्षमता और महत्वकांक्षा का है.....अब यहां एक सवाल उठता है कि कौन नहीं चाहता कि उसके पास ढ़ेर सारा पैसा हो....कौन नहीं चाहेगा कि उसके बच्चे दुनिया के सबसे अच्छे संस्थान से पढ़ाई करे...लेकिन ये उसका सपना होता है...ये उसकी इच्छा होती है...मैं कहुंगा कि मकसद और सपना में फर्क है....और कोई मामूली फर्क नहीं है...सपना मेरा हो सकता है कि मैं ऑफिस मारूती इस्टीम में जाऊं....लेकिन मेरा मकसद ये नहीं है कि मेरे पास ढ़ेर सारा पैसा और महंगी गाड़ी हो....सपना हो सकता है कि मेट्रो सिटी में एक शानदार मकान हो...लेकिन मकसद ये नहीं है...मकसद तो गांव में एक छोटे से घर में रहने की है...जहां खिड़की से ताजा हवा का झोंका हर रोज चेहरे से आकर टकराये...जहां सूरज की पहली किरण खिड़की के रास्ते मेरा माथा चूमे....अब सबसे अहम सवाल कि जब मुझे मेरा मकसद पता है तो देश की राजधानी में क्या कर रहा हूं...तो इसका जवाब मेरे पास है....यहां मीडिया के अलग-अलग ट्रेंड और नये रूप से दो चार हो रहा हूं.....क्योंकि आने वाले दिनों में रिजनल मीडिया का बोलबाला होगा....आज जो खबरें धड़ल्ले से बिकती हैं...उसकी टीआरपी कम होने वाली है....और जो वास्तव में खबर होती है...जिसका नाता मास से होता है...वैसी खबरें ही दिखायी सुनाई और छपी होंगी.....ऐसे में मेरा मकसद दूर गांव में रहकर पत्रकारिय जीवन का निर्वाह करना है..तो क्या ये गलत है ?