Friday, March 12, 2010

भारतरत्न के लिए सचिन बड़ा नाम

”ईश्वर क्रिकेट खेलना चाहता था कि इसलिए सचिन पैदा हुए।” यह एक क्रिकेटदर्शक का उदगार है जो सचिन के वन डे में दोहरे शतक के बाद ट्वीटर पर आयाथा। इस गौरवशाली पारी के बाद महान खिलाड़ी सुनिल गवास्कर ने कहा कि मैंसचिन के पैर छुना चाहुंगा। जिस देश में क्रिकेट को धर्म कहा जाता हो औरएक खिलाड़ी के प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा हो वहां सचिन जैसे खिलाड़ीको भारतरत्न नहीं मिलना किसी को भी खटक सकता है।इससे किसी को भी गुरेज नहीं हो सकता है कि सचिन समकालिन क्रिकेट के सबसेमहान खिलाड़ी हैं। एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोहरा शतक लगानेके बाद विश्वभर में सचिन तेंदुलकर चर्चा के विषय बन गये। देशभर से येआवाज आने लगी कि सचिन को भारतरत्न दिया जाना चाहिए। सचिन ने दक्षिणअफ्रिका के खिलाफ ग्विलियर में नाबाद दोहरा शतक लगाया था। इससे पहले वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक 194 रन का रिकॉर्ड था।महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने मुम्बई में सचिन के नाम सेसंग्रहालय बनाने की भी बात कर दी। जहां सचिन से जुड़ी यादों का संग्रहहोगा। पूर्व क्रिकेटर अजित वाडेकर, कपिलदेव, और दिलीप वेंगसरकर ने कहा किसचिन इस सम्मान के हकदार हैं। टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा भी सचिन कोभारतरत्न के योग्य मानती हैं।सचिन को भारतरत्न दिये जाने की मांग सिर्फ खिलाड़ियों और राजनीतिज्ञोंमें ही नहीं है। आम नागरिक भी सचिन को यह पुरस्कार दिये जाने के हक मेंहैं। मुनिरका के रहने वाले विजय श्रीवास्तव को खेल में रूचि नहीं है,लेकिन वे सचिन को जानते हैं। विजय का कहना है कि क्रिकेट में सचिन सेबड़ा नाम कोई नहीं है इसलिए उनको यह अवार्ड मिलना चाहिए। मुनिरका के हीपरमानंद सिंह का कहना है कि— मैं 25 सालों से क्रिकेट देख रहा हूं लेकिनमैंने ऐसा खिलाड़ी नहीं देखा। सचिन को भारतरत्न जरूर मिलना चाहिए।सुल्तानपुर के रहने वाले रणविजय ओझा भी मानते है कि अगर पुरस्कारों केपीछे काम कर रही लाँबी नहीं हो तो निश्चत रूप से तेंदुलकर को देश कासर्वोच्य सम्मान मिलना चाहिए।सचिन के प्रति ऐसी भावना और सम्मान प्रकट करने वाले लोगों की कोई गिनतीनहीं है। जिन लोगों को क्रिकेट में रुचि नहीं है वो भी सचिन की प्रतिभाके कायल हैं। सचिन को यह सम्मान एक दिन में नहीं मिला है। इस सम्मान केलिए सचिन रमेश तेंदुलकर ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कुछ आलोचकों ने तोयहां तक कहना शुरू कर दिया कि शेर बुढ़ा हो गया है। उनकी आलोचना करनेवाले भी इससे इन्कार नहीं कर सकते कि सचिन ही क्रिकेट के शेर हैं। शेरबुढ़ा नहीं हुआ ये नाबाद 200 रन की पारी के बाद साबित हो गया है। सचिन काएक लम्बा और बेदाग करियर रहा है। पूरे देश को उनपर गर्व है। सचिन ने कईमौकों पर देश का नाम ऊंचा किया है। अगर उनको भारत का सर्वोच्य नागरिकसम्मान मिलता है तो क्रिकेट का मान बढ़ायेगा और साथ ही साथ करोड़ोंक्रिकेट प्रेमियों का मान बढ़ेगा।

Wednesday, March 3, 2010

जेएनयू की हुड़दंग वाली होली


कुछ चीजें होती है जिन पर यकीन करने का मन नहीं करता लेकिन करना पड़ता है। होली वाले दिन जेएनयू कैम्पस का भी नजारा कुछ ऐसा ही था जिस पर भी आसानी से भरोसा नहीं हुआ। लेकिन ये खयाल आया कि जब होली का मौसम हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है। मस्ती में डूबे युवक-युवतियों ने जो धमाल किया उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती थी। रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे और हाय ये होली उफ ये होली जैसे गीतों पर थिरकते लोगों को कैमरे में कैद करने का मौका कोई भी चुकना नहीं चाहता था। लाल पीले काले नीले रंगों से सराबोर छात्रों को देख कर कोई भी नहीं कह सकता था कि ये जेएनयू के वही छात्र है जो भारतीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय संबंध और समाजवाद पर लंबे लंबे भाषण देते हैं रंग-बिरंगे गेटअप में झुमते नाचते लड़के-लड़कियों में अंतर करना मुशिकल था। किसी ने कुर्तो भाड़ रखे थे तो कोई उन फटे कपड़ों का डिजायन बनाये। कोई भांग पी रहा था तो किसी ने रम पी रखी थी। किसी के हाथ पिचकारी थी तो किसी के हाथ गुलाल की पोटली। यहां पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों के लिए यह अद्भूत नजारा होता है। इस उमंग और मेल-मिलाप के त्योहार का कोई भी मौका चुकनी नहीं चाहते। हमेशा दूर से ही पहचाने जाने वाले इन छात्रों को पहचानना मुश्किल था। सभी आज भारतीय रंग में घुल गये थे। मस्ती के इस अनूठे अवसर को वे लगातार कैमरे में सहेजते रहे। होली के मशहुर गीतों पर झुमते इन युवाओं को रोकना किसी के वश में नहीं था। सारे झीझक और सभी बंदिशे तोड़कर वे दिखा देना चाहते थे कि भारत को यूं ही युवाओं का देश नहीं कहा जाता। यहां छात्रों में जो उर्जा लाजवाब थी। भविष्य की सारी चिंताये भूलाकर आज सिर्फ नाचना थिरकना चाहते थे। ऐसा भी नहीं था कि इन छात्रों में मस्ती के आलम में सारी मर्यादाएं तोड़ दी हो। उनको नशे में भी अपने हद में थे। नफरत कटुता और इस तरह की सारी शिकायतों को भूलाकर लोग एक दूसरे के गले के गले मिल रहे थे। मन के अवसादों को भूलाकर उनका चेहरा चमक रहा था। होली की ऐसी सुन्दरता को जेएनयू के ही छात्र बनाये रख सकते थे जिन पर देश की कई उम्मीदें जुड़ी होती है।
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