Friday, July 2, 2010

मासूम मासूमियत भरी

संडे नाइट में ड्यूटी थी...सुबह से घर पर ही था...पिछली रात पार्टी के बाद थोड़ी सुस्ती थी....दोस्तों में संतोष और हेमंत ही थे....पवन रोज की तरह लेपटॉप पर व्यस्त था...पेपर पढ़ते हुए दोस्तों से बात भी हो रही थी...साथ ही खाना बनाने की प्लानिंग भी....लेकिन कोई भी जल्दी खाने को तैयार नहीं था..शायद पिछली रात की पार्टी का असर गया नहीं था....हेमंत थोड़ा विचलित लग रहा था..और बार-बार बदरपुर जाने की जिद कर रहा था...लेकिन संतोष बिल्कुल संतोषी बना आराम से दीवाल को सजा रहा था...क्योंकि कल उसे ये मौका नहीं मिला था..वो पार्टी में देर से आया था....उसके चार बजे तक आ जाने की उम्मीद थी लेकिन स्वतंत्रता सेनानी ने उसे ये मौका नहीं दिया.....पार्टी बर्थ-डे का था...लेकिन हम लोगों में से किसी का बर्थ-डे नहीं था..असल में बर्थ-डे हमारी फ्रेंड का था....बातों बातों में हमलोगों ने खाना भी खा लिया...फिर भी शाम होने में काफी समय शेष था...मैंने फिल्म देखने की इच्छा बतायी...संतोष भी तैयार हो गया....ज्यादा सोचविचार करने की जरूरत नहीं पड़ी...पहले से ही मासूम देखने की सोच रहा था...कुछ देर बाद हमलोग टैपटॉप से चिपक गये...माहौल बहुत ही हल्का...हल्का इसलिए कि बैठने में कोई शिष्टाचार नहीं था...हां फिल्म देखने में जरूर गंभीरता थी...फिल्म शुरू हुई और कब हम सभी उसमें पूरी तरह डूब गये पता नहीं चला....फिल्म का हर पक्ष लाजवाब लगा..कहानी दबरदस्त संगीत बेजोड़,अभिनय दमदार यानी भरपूर मनोरंजन..यहां भरपुर मनोरंजन कहना आपको खटक सकता है...क्योंकि आपको लगेगा कि मासूम तो एक गंभीर विषय की फिल्म है...तो इसमें मनोरंजन कैसा ? तो मैं कहुंगा मनोरंजन केवल कॉमेडी एक्शन और प्रेम कहानियों में नहीं होता.....फिल्म में पूरी तरह डूब चुका था...कहानी और पात्र की संवेदनाओं ने मुझे पूरी तरह जकड़ लिया था...बीच-बीच में दोस्तों की कंपनी में जबरदस्ती हंसी आती लेकिन वो टिक नहीं पाती थी....महीनों बाद एक अच्छी फिल्म देख रहा था....मैं चाहुंगा कि ये फिल्म आप सभी जरूर देखें....शेखर कपुर ने शबाना आजमी और नसीरूद्दीन शाह को लेकर एक अच्छी फिल्म बनाई है...इसमें बाल कलाकार के रूप में उर्मिला और युगल हंसराज ने काम किया है....कम पात्रों और कम लागत में बेहतरीन फिल्म है....-- Akash Kumar sigh--