Saturday, July 16, 2011

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा.....

अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई...दिल्ली के जंतर मंतर पर अनशन किया...अनशन को देशभर से समर्थन मिला...मीडिया ने भी अन्ना हजारे का साथ दिया....अनशन की वजह से सरकार को घुटने टेकने पड़े...सरकार ने एक सशक्त लोकपाल बिल लाने का वादा किया...सरकारी पक्ष औऱ सिविल सोसायटी के बीच कई दौर की बातचीत हुई....लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला...अन्ना की नेकनियती पर सवाल उठने लगे...कहा जाने लगा कि अन्ना की इस मुहिम को संघ का समर्थन मिल रहा है....इससे बौखलाए अन्ना हजारे ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी....
भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी के आंदोलन की एक और कहानी उत्तराखंड के देहरादून में लिखी जा रही थी...दरभंगा के एक स्वामी निगमानंद ने देहरादून में अवैध खनन का विरोध किया...क्योंकि इसकी वजह से गंगा का अस्तित्व खतरे में था...स्वामी निगमानंद ने भी लगातार अनशन किया...पूरे 74 दिनों तक....इस अनशन ने निगमानंद को देहरादून एक अस्पताल में पहुंचा दिया...यहां अस्पताल में निगमानंद की सूध किसी ने नहीं ली...मीडिया की नजरों से भी स्वामी का आंदोलन बचा रहा....
भ्रष्टाचार से जुड़ा एक और आंदोलन स्वामी रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में शुरू किया....अन्ना के अनशन से डरी सरकार ने रामदेव को मनाने की कोशिश की...सरकार के चार मंत्री अन्ना से मिलने एयरपोर्ट पहुंच गये...लेकिन स्वामी रामदेव ने 4 जून को अनशन शुरू कर दिया...लेकिन दिल्ली पुलिस ने अनशन पर डंडा चला दिया...रामदेव को देहरादून जाना पड़ा....मीडिया ने स्वामी रामदेव का पीछा किया...और पहुंच गये उसी अस्पताल में जहां स्वामी निगमानंद का इलाज चल रहा था....यहां से स्वामी निगमानंद की मीडिया ने सूध ली..फिर तो निगमानंद का हाल चाल पूछने वालों का जमावड़ा लगने लगा...लेकिन इसी दौरान निगमानंद ने दम तोड़ दिया....यहां देश के नेताओं सहित मीडिया ने भी माना कि उनसे भूल हुई है...निगमानंद की आवाज सुनी जानी चाहिए थी....
निगमानंद की आवाज अभी भी सुनी जा सकती है...स्वामी निगमानंद की लड़ाई को आगे बढ़ाके....क्योंकि उत्तराखंड में अवैध खनन का काम बदस्तूर जारी है....यहां अन्ना हजारे को मोर्चा संभालना चाहिए...और अवैध खनन को रोकने के लिए अनशन करना चाहिए...क्योंकि आज अन्ना को देशभर में पहचान मिली है...आज अन्ना की बातें सरकार में शामिल बहरे नेता भी सुनने लगे हैं....मेरा मानना है कि ऐसा करने से अन्ना के उन विरोधियो की जुबान पर लगाम लगेगी....जो अन्ना पर संघ के इशारे पर चलने का आरोप लगाते हैं.....और सबसे बड़ी बात कि एक सार्थक काम को उसके मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है......


Saturday, July 9, 2011

मेरी प्यारी सी मंजिल

समय इन दिनों काफी तेजी से निकल रहा है....ऑफिस के काम को निपटा के घर जल्दी पहुंचने की जल्दी...ऑफिस के गेट से बाहर निकलते ही...हाथ की उंगलियों और कदमों के बीच रेस होन लगता है...हाथ की उंगलियां मोबाइल फोन के कीबोर्ड पर और कदम रास्ते पर सरपट दौड़ने लगते हैं...कदम तो थोड़ी देर बाद रुक जाते हैं...लेकिन हाथ की उंगलियां बदस्तूर जारी रहती हैं...बस में बैठने के बाद ड्राइवर पर ही ध्यान लगा रहता है...ड्राइवर का ब्रेक लगाना मानो दिल पर धक्का देता है...यही समय होता है जब नींद मुझे अपनी बांहों में लेने को बेकरार ....और शायद मैं भी उसके आगोश में जाने को तैयार.....25 से 30 मिनट बस में बिताना ऐसा लगता है मानो घंटो से सफर में हो....जैतपुर मोड़ उतरने के बाद थोड़ी राहत मिलती है...अब गुस्सा ड्राइवर पर नहीं आता...ट्रैफिक नियम को ताक पर रखकर गाड़ियों की आवाजाही पर गुस्सा आता है...शायक वे भी अपनी किसी मंजिल पर जल्दी से जल्दी पहुंचना चाह रहे हो....मोड़ से न्यूज पेपर खरीदने में मुश्किल से 2 मिनट का सयम बर्बाद होता है....लेकिन वो 2 मिनट भी मेरी मंजिल में बाधा नजर आता है...पेपर खरीदना इसलिए जरूरी होत है...क्योंकि इसमें मेरी मंजिल की मर्जी शामिल होती है...आखिरकार मुझे मेरी मंजिल से मुलाकात होती है और बेकरार दिल को करार मिलता है....मेरी ये मंजिल किसी और मंजिल से इसलिए अलग होता है क्योंकि मैं रोज इस मंजिल तक पहुंचने का रास्ता तय करता हूं और पहुंचता हूं