Wednesday, March 7, 2012

होली बोले तो हठ और हुड़दंग....

हठ और हुड़दंग के त्योहार होली में आपका हार्दिक स्वागत है....आपने कैसे हुड़दंग मचाया है...किसके साथ हठ किया है...उसपर विस्तार से चर्चा करने के लिए अगले कुछ मिनटों तक आप हमारे साथ हैं...सबसे पहले हम बता करते हैं....आज के दिन होने वाले अगल-अलग हठ की जो आपके घर से शुरू होकर पड़ोस तक पहुंचती है...और दोस्तों के साथ मस्ती के माहौल में परवान चढ़ती है....चर्चा की शुरूआत घर के सबसे छोटे बच्चे टिंकू से करते हैं....जिसने बंदूक वाली पिचकारी के लिए मुंह फुला रखा है...और जिसको मनाने के लिए मम्मी-पापा तरह-तरह के पोज दे रहे हैं....बीच-बीच में भाभी जान टिंकू को चिकोटी भी काट लेती है...लेकिन टिंकू का जीया मानने वाला नहीं है....इसी बीच पड़ोस के बच्चों की मंडली आती है....जो टिंकू को रोता देख वे वापस चले जाते हैं...लेकिन टिंकू उस्ताद की सेहत पर इसका भी असर नहीं पड़ता...थक हार कर बंदूक वाली पिचकारी मंगानी पड़ती है...फिर शुरू होता है सन्नी का हठ जो जींस के लिए रूठा है...लेकिन वो जल्दी मान जाता है...इन सब हठो से इतर एक और हठ होता है...जो करीब-करीब हर घर में होता है...और ये होता है...भौजाई को रंग लगाने का हठ...जो सबसे सुखद होता है....ये ऐसा अनुभव होता है...जिसका इंतजार हर देवर पूरे सालभर करता है....लेकिन भौजाई भी इतनी आसानी से कहां मानने वाली है...वो तो पूरा कसरत करा के ही रंग लगवाएगी...
होली के एक भाग हठ पर चर्चा करने के बाद नंबर आता है हुड़दंग का...जब घर के जवान छोकरे गलियों में निकल आते है....यहां से शुरु होती है नाली सफाई और कुर्ता फड़ाई अभियान...जिससे कोई नहीं बच पाता....कोई आसानी से फड़वाता है...तो कोई होशियारी झाड़ता है....लेकिन होली के इस रंग से कोई नहीं बच पाता है.....जो जितनी होशियारी मारता है...उसकी उतनी ही फजीहत होती है....हालांकि होली का ये रंग ज्यादा देर तक नहीं रहता...लेकिन कम समय में ही फुल मस्ती होती है....जिसकी याद जेहन में रच-बस जाती है....