Saturday, September 1, 2012

आसान नहीं बिहार टीईटी की राह...


6-14 साल के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के तहत बिहार में टीईटी यानी टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट का आयोजन किया गयाकेंद्र सरकार की इस योजना को बिहार सरकार ने भी खूब प्रचारित किया...लाखों शिक्षकों की बहाली की बात राज्यभर में आग की तरह फैल गई...चूकि लोगों को नौकरी की जरूरत थी..सो लाखों की संख्या में लोगों ने परीक्षा में हिस्सा लिया...रिजल्ट निकला और आवेदन स्वीकार भी होने लगे...लेकिन राज्य सरकार ने लचर व्यवस्था और कामचोर कर्मचारियों की वजह से आवेदन लेने की तारीख 15 दिनों के लिए आग बढ़ा दिया...इस उम्मीद के साथ कि 15 दिनों में पूरी तैयारी कर ली जाएगी...15 दिनों बाद यानी 16 अगस्त से आवेदन लेने की प्रक्रिया तो शुरू हुई लेकिन कुछ ही जिलों में...ज्यादातर जिले भ्रम की स्थिति में रहे...मुझे सिवान जिले के कुछ ब्लॉक में जाने का मौका मिला...लेकिन वहां की स्थिति देख मैं हैरान रह गया...30 अगस्त को सवा 10 बजे के करीब मैं विक्की(भतीजा) के साथ सिसवन ब्लॉक पहुंचा...वहां उसी दिन से आवेदन लेने का काम शुरु होने वाला था...पूछने पर पता चला कि आवेदन 11 बजे से लिया जाएगा...किसी तरह से सवा 11 बजे आवेदने लेने का काम शुरू हुआ...लेकिन वहां तैनात कर्मचारी को ये भी पता नहीं था कि रजिस्टर में एंट्री क्या करना है...कर्मचारी दूसरी कक्षा के बच्चे की तरह पूछ-पूछ कर रजिस्टर में नाम पता लिख रहा था...यानी उस कर्मचारी को पहले से कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई थी...
वहां से आगे बढ़ा...रघुनाथपुर ब्लॉक में स्थिति और भी शर्मसार थी...वहां दफ्तर के एक कर्मचारी ने चिरपरिचित अंदाज में कहा कि पता नहीं है...बीआरसी में जाकर पता करो...बीआरसी यानी ब्लॉक रिसोर्स सेंटर...मैंने वहां जाकर पता किया...लेकिन वहां के कर्चारियों को इसकी सूचना नहीं थी..कर्मचारी ने मुझ पर ही सवाल की झरी लगा दी...पूछने लगा यहां किसने भेजा...क्या नाम था उसका..किस तरह के कपड़े पहने थे..वगैरह वगैरह...मैने बीडीओ से इस बारे में पूछा...बीडीओ को आवेदने लेने की सूचना तो थी... सुवह के करीब 12 बज रहे थे...लेकिन वे निश्चिंत एक मीटिंग में व्यस्त थे...मुझे आश्वासन दिया कि 10 मिनट इंतजार कीजिए...मीटिंग के बाद बड़ा बाबू शुरू करवाएंगे...मैंने वहां टाईम गंवाने की बजाय दूसरे ब्लॉक का रूख किया...अगला पड़ाव आन्दर ब्लॉक था..जहां थोड़ी सी मशक्कत के बाद काम हो गया...वहां से दरौली पहुंचा जहां आवेदन तो स्वीकार कर लिया गया...लेकिन वहां बैठे कर्मचारी ने रजिस्टर में एंट्री नहीं की...रिसीविंग देकर विदा कर दिया...मैंने पूछा कि रिसीविंग पर मोहर क्यों नहीं लगा..तो जवाब मिला हमलोगों को मोहर नहीं मिला है...मैंने इसकी सूचना वहां के बीडीओ को देनी चाही...लेकिन वहां मौजूद ही नहीं थे..सवाल है कि जब राज्य सरकार ने 16 अगस्त से आवेदन लेने की तारीख तय की थी तो वहां काम शुरू होने में इतना टाईम क्यों लगा ?..आवेदन के लिए तैनात कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग क्यों नहीं दी गई ?...अगर ब्लॉक के बीडीओ पर इसकी जिम्मेदारी थी...तो बीडीओ ने क्यों सही समय पर काम शुरू नहीं करवाया ?...ऐसे कई सवाल हैं...जिनसे टीईटी पास करनेवाले अभ्यर्थीयों को रोज दोचार होने पड़ रहा है...सवाल ये भी है कि नियोजन प्रक्रिया को इतना जटिल क्यों बना दिया गया...यहां एक बार फिर से आर्थिक तंगी की मार झेल रहे लोगों के लिए टीचर का जॉब महंगा पड़नेवाला है...क्योंकि जिले के हर ब्लॉक में जाकर आवेदन देना इतना आसान नहीं है...ऊपर से ये भी तय नहीं है कि नौकरी पक्की ही हो जाएगी...क्योंकि अगर बैकडोर में सेटिंग कर ली गई तो सारी मेहनत बेकार समझो...