Friday, October 23, 2015

इस रामायण में सब माफ है...


हमर माल के ठीक से रखिहे...ये संवाद रामायण के उस राम के हैं...जिस रामायण में राम के अनुज लक्ष्मण अपनी भाभी के अंगों को निहारता है...और रावण सीता को गोद में उठाकर ले जाता है...राम-रावण के बीच युद्ध में रथ की जगह पीक अप का इस्तेमाल किया जाता है... तो लंका को जलाने में बम-पटाखों का प्रयोग होता है...वेश-भूसा जरूर पारंपरिक होता है लेकिन लक्ष्मण रामलीला के दौरान भी च्वींगम चबाता है, तो पुरूषोत्तम श्रीराम रिलैक्स होने के लिए स्प्राइट की मांग करता है...

दशहरे के मौके पर अपने गांव में रामलीला का आयोजन किया गया...हर साल की तरह गांव के बच्चों में रामलीला में भाग लेने की उत्सुकता दिखाई दी...लेकिन रामायण के किरदार को चरितार्थ करने, उसे जीवंत करने का घोर अभाव दिखा...मतलब साफ था कि आज बच्चों के लिए रामायण की वो बातें, वो आदर्श, वो नैतिकता बेमानी हो गई है...जिसकी लाज रखने के लिए पुरूषोत्तम श्रीराम ने सत्ता को ठोकर मार दी...और पिता के वचन के पूरा करने के लिए खुशी-खुशी वनवास को स्वीकार किया...भाईयों के बीच इतना प्रेम था कि बड़े भाई के वन जाने के बाद छोटे भाई ने सत्ता लेने से इंकार कर दिया...देवर-भाभी का रिश्ता इतना पवित्र कि लक्ष्मण अपनी भाभी सीता को भाभी मां कहते थे...
इस बदलाव के लिए सिर्फ आज की पीढी को दोष देना ठीक नहीं है...बल्कि हर वो शख्स, समुदाय, और संस्था जिम्मेदार हैं...जिन्होंने अपने काम को ईमानदारी से नहीं किया...उल्टे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उन आदर्शों को चोट पहुंचाने की कोशिश की...और लगातार कर रहे हैं...इसलिए जरूरत इस बात की है कि बच्चे और युवा स्वयं इसकी जिम्मेदारी अपने हाथ में लें...और समाज को आईना दिखाने की कोशिश करे...जरूरी नहीं कि उनको सौ फीसदी सफलता मिल जाए...लेकिन इनता जरूर है कि समाज में बदलाव दिखेगा...धीरे-धीरे जब ये बदलाव हर समाज में दिखने लगेगा...तो निश्चित रूप से इसका असर उन लोगों पर भी होगा...जो निराश होकर हार मान चुके हैं...और मुकदर्शक बने बैठे हैं...मैं समाज के उन वरिष्ठ लोगों से अपील करता हूं कि आज जरूरत मुकदर्शक बने रहने की नहीं है...युवाओं के जोश और उर्जा को सही दिशा देने की जरूरत है, उनसे तालमेल बैठाने की आवश्यकता है...क्योंकि परिवार, समाज और देश की तरक्की तभी हो सकती है जब
अनुभव और उर्जा एक साथ काम करे...

Thursday, September 24, 2015

घर वापसी मुश्किल क्यों ?


बिहार नेशनल कॉलेज से स्नातक होने के बाद राकेश आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली गया...देश के एक बड़े मीडिया संस्थान में पढ़ाई की, फिर नौकरी...एक टेलीविजन चैनल में 3 साल तक नौकरी की...फिर एक दिन अपने घर आने का मौका मिला...बिहार में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट यानी टीईटी का आयोजन किया गया था...जिसमें पास करने के बाद शिक्षक की नौकरी मिलने का भरोसा जगा...इस भरोसे के साथ वो दिल्ली में एक अच्छी नौकरी को ठोकर मारकर बिहार आ गया...यहां आने के बाद पता चला कि सिर्फ टीईटी पास होना ही काफी नहीं है...शिक्षक बनने के लिए ट्रेनिंग की भी जरूरत है...सो राकेश ने एक सरकारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान से 2 साल की ट्रेनिंग पूरी की...लेकिन नौकरी नहीं मिली...

इन दिनों राकेश से जब कोई पूछता है कि नौकरी का क्या हुआ ? तो झेंप जाता है...अपने घरवालों से भी आंखे चुराता रहता है...राकेश को बहुत उम्मीद थी कि बिहार विधान सभा चुनाव के तारीखों के एलान से पहले नौकरी मिलने की कोई सूचना मिल जाए...लेकिन ऐसा नहीं हुआ...अब वो कुछ और काम करने या फिर दिल्ली लौटने का विचार कर रहा है...
राकेश की तरह अजीत, संतोष, सतीश आदि कई लोग हैं जो बिहार लौटना चाहते हैं...लेकिन कोई रास्ता नहीं दिख रहा है...इसलिए वे अपने काम में लगे हुए हैं...अब उस काम में मन लगे या नहीं लगे कोई फर्क नहीं पड़ता...क्योंकि आमदनी का कोई और जरिया नहीं है...इसलिए हर हाल में उस काम को करना है...उनको राकेश से सबक भी मिला है कि बिना किसी उचित व्यवस्था के घर लौटना समझदारी नहीं है...

ऐसे में बिहार से बाहर जाकर पढ़ाई करने वालों छात्रों पर आरोप लगते हैं कि वे अपने प्रदेश के विकास के लिए कुछ नहीं करते... आरोप लगाने वाले कहते हैं कि वे बाहर पढ़ाई करने जाते हैं... पढ़ाई के बाद किसी मल्टी नेशनल कंपनी में उनको अच्छी नौकरी मिल जाती है...अच्छी नौकरी मिलने पर धीरे-धीरे प्रदेश से उनका नाता टूटने लगता है...फिर उनको अपने प्रदेश में कई तरह की बुराईयां नजर आने लगती हैं...और एक दिन ऐसा आता है जब वे बिहार नहीं लौटने का इरादा पक्का कर लेते हैं...

हमें इस तरह का आरोप लगाने से पहले गंभीर चिंतन करने की जरूरत है...साथ ही अरस्तू के उस कथन पर भी विचार करने की आवश्यकता है...जिसमें मनुष्य को सामाजिक प्राणि बताया गया है...मतलब हर आदमी समाज में, परिवार में, अपनो के बीच रहना चाहता है...जहां उसे विचार साझा करने, अपनी बात कहने का पूरा मौका मिले, जहां लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में हाथ बंटाए, एक-दूसरे का ख्याल रखे...ऐसे माहौल में व्यक्तित्व का विकास समूचित रूप से होता है...और वो विकास की ओर अग्रसर होता है...

Thursday, March 5, 2015

होली का उपहार

मायूसी का नाम ना होवे, रहे होठों पे मुस्कान
जीवन हो उम्मीद भरा, सफलता चूमे द्वार
जीवन सबका सुन्दर होवे, मंगल हो विचार
रंगों का है मौसम आया, कबूल करें ये उपहार
नाचो गाओ खुशी मनाओ, शालीनता का है त्योहार
रखो मगर ये ध्यान हमेशा नहीं बिगड़े व्यवहार

Thursday, February 26, 2015

मैं सुधरना चाहता हूं...


आप सब के दिलों में मेरा खौफ है...मेरा ख्याल आते ही आपकी रूहें कांप जाती है...मैं हमेशा आपके बीच चर्चा का विषय बनता हूं...मेरा नाम लेकर आप तंज कसते हैं, चुटकियां लेते हैं...जब भी आपसे मुलाकात होती है, मेरे बारे में बिना कुछ कहे आपसे रहा नहीं जाता है...आपके बीच मेरी छवि इतनी खराब है कि जब कभी अच्छा भी करता हूं तो सराहना नहीं मिलती...
मैंने कई मौकों पर आपको इरिटेट किया है...आपके हर शुभ काम में मैंने बाधा डालने का काम किया है...जब आप अपनी जीवन संगिनी को लाने जाते हैं तो मैं परेशान करता हूं...जब आप अपनी प्रेयसी से मिलने के लिए उतावले होते हैं तो मैं आपको इंतजार करवाता हूं...जब आप किसी मीटिंग के लिए देर हो रहे होते हैं तो मैं और आपका मूड खराब करता हूं...सिर्फ मैं ही नहीं मेरे सगे-संबंधी जैसे शीतलपुर ढाला, गोविन्दचक ढाला भी आपको परेशान करते हैं लेकिन वो आपको फील नहीं होता...दरअसल मैं इतना कुख्यात हो गया हूं कि मेरी अच्छाई किसी को दिखती ही नहीं है...मेरी अच्छाई के बारे में कभी जानना हो तो उस आदमी से पूछना जिसे जोर की लगी हो और वह कई घंटों से गाड़ी रूकने का इंतजार कर रहा हो...लोगों के बीच सिर्फ मेरा ही रिपुटेशन ऐसा है जो आपको तसल्ली से मूतने का मौका देता है...जी हां सही समझा आपने मैं दिघवारा ढाला हूं...
मेरी कुछ और भी अच्छाईयां हैं...मेरी वजह से कुछ लोगों को दो जून की रोटी नसीब होती है...किसी का दैनिक रोजगार चल पड़ता है...जब आप तपती गर्मी से व्याकुल होते हैं तो मैं आपकी प्यास मिटाता हूं...जैसे ही आपकी गाड़ी मेरी दहलीज पर रूकती है, पानी-पानी की आवाज लगाता मेरा आदमी आपके पास होता है...आपकी शान में सिर्फ पानी ही नहीं स्प्राईट, मिरिंडा और पेप्सी भी पेश किया जाता है...अगर आपको हल्की भूख लगी तो उसका इंतजाम भी मेरे पास होता है...नारियल, मुंगफली, कुरकुरे, चिप्स के अलावे खीरा, ककरी, लीची, अमरूद जैसे मौसमी फल भी आपकी खिदमत में हाजिर रहते हैं...
अब फिर से अपने रिपुटेशन की बात करते हैं...कुछ लोगों को मेरी आदत पड़ चुकी है...वे घर से ही मेरे लिए अतिरिक्त समय निकाल कर चलते हैं...फिर भी ऐसे लोगों की संख्या गिनती मात्र है...सर्दी के दिनों में तो लोग मेरा टॉर्चर सह भी लेते हैं...लेकिन गर्मी में उनका हाल बेहाल होने लगता है...अगर सफर के दौरान साथ में छोटे-छोटे बच्चे हो तो फिर महिलाओं की मानो शामत आ जाती है...बच्चे गर्मी की वजह से बहुत ज्यादा रोते हैं...उनके बार-बार रोने से साथ वाले यात्री भी इरिटेट होने लगते हैं...मुझे ये सब अच्छा नही लगता...मैं अपनी छवि बदलना चाहता हूं...जी हां मैं सुधरना चाहता हूं...

Wednesday, February 18, 2015

यहां सब ठीक है !


बचपन से ही हमें बताया जाता है कि विद्यालय शिक्षा का मंदिर है...यहां बच्चे को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की कोशिश की जाती है...गुरु का कर्तव्य होता है कि वे छात्रों को सदाचारी बनने की शिक्षा दें...यही कारण है कि समाज में गुरु का ऊंचा स्थान है...विद्यालय के प्रति लोगों में मन में एक भरोसा होता है...स्कूल में भेजकर मां-बाप निश्चिंत हो जाते हैं कि उनके बच्चे बुराई के रास्ते पर नहीं चलेंगे...लेकिन वास्तव में क्या ऐसा है ?
बेशक नहीं ! वजह कई हैं...पहली वजह है आज का बाजारीकरण...बाजारीकरण ने हमारे समाज के नैतिक मूल्यों पर कड़ा प्रहार किया है...आज हमें सामाजिक मर्यादाओं से ज्यादा नफा-नुकसान की चिंता होती है...हम किसी भी काम में, किसी भी मौके पर अपना हित साधने के लिए तत्पर रहते हैं...यहां तक की, किसी की मईयत में भी हम साफ मन से नहीं जाते हैं...जिसका नतीजा है कि आज हमारे आस-पास का हर आदमी शक के घेरे में है...विश्वास टूट रहा है...भाई का भाई पर से, पिता का बेटे पर से, पति का पत्नि पर से...आचरण दूषित हो रहा है...हर एक के मन में छल-कपट घर कर रहा है...ऐसे में एक शिक्षक कैसे इस माहौल से परे हो सकता है ?
दूसरी वजह है सरकार की नीति...दोपहर का भोजन कार्यक्रम ने शिक्षकों का पूरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया...कल तक जो टीचर छात्रों का मूल्यांकन करता था, आज वह चावल-दाल का हिसाब लगाने में व्यस्त है...सरकार ने सोचा कि भोजन के लालच में बड़ी संख्या में बच्चे विद्यालयों का रूख करेंगे...और शिक्षा के स्तर में सुधार होगा...ऐसा हुआ भी स्कूल के रजिस्टर ने ताबड़-तोड़ सैकड़ा ठोंक दिया...कहीं-कहीं तो छात्रों की संख्या ने 150 का आंकड़ा भी पार कर लिया...पर शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ...उधर लालच ने शिक्षकों को भी नहीं छोड़ा...अब हर टीचर इस ताक में रहने लगा कि चावल-दाल में से दो-चार किलो का जुगाड़ कैसे लगे...
तीसरी वजह है भ्रष्टाचार...आज ये एक ऐसा हथियार जिसके दम पर गलत से गलत काम को भी खूबसूरती से अंजाम दिया जा रहा है...इस धारणा को बल मिल रहा है कि अगर जेब में पैसा है तो किसी से डरने की जरूरत नहीं है...क्योंकि सब को खाने की गंदी आदत पड़ चुकी है...बावजूद इसके कि देश में आजकल खाने की सख्त मनाही है...बीईओ यानी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी स्कूल में निगरानी करने आता है...स्कूल में कई शिक्षक अनुपस्थित मिलते हैं, मीड डे मिल में गड़बड़ी होती है, साफ-सफाई नहीं होती, लेकिन ऑफिस में ही सबकुछ मैनेज हो जाता है...बीईओ अपने सीनियर को रिपोर्ट कर देता है – यहां सब ठीक है

Tuesday, February 17, 2015

कमाई बिना मलाई कैसे ?


जंगल से एक भालू आया
एक मदारी उसको लाया।
गांव-गांव और शहर-शहर में
घूम-घूम के नाच दिखाया।
डम-डम डमरू बाजे
छम-छम भालू नाचे।
नाच-नाच के पैसा मांगे
पैसे से ही किस्मत जागे।
जल्दी से कुछ पैसे दे दो
पैसे नहीं तो चावल दे दो।
नहीं हुई है आज कमाई
कैसे मिलेगी फिर मलाई ?


Sunday, February 8, 2015

फिजूलखर्ची विज्ञापन


बिहार में नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री थे तो राज्यभर में उनके फोटो वाला विज्ञापन दिखा, जिसमें सरकार के कामकाज और योजनाओं का लेखा-जोखा था... फिर जब जीतन राम मांझी को सीएम बनाया गया...तो रातोंरात JRM की फोटो वाली विज्ञापन दिखने लगा...अब खबर है कि नीतीश कुमार फिर से सीएम बनाने की तैयारी है...जाहिर है फिर से नीतीश कुमार की फोटोयुक्त विज्ञापन राज्य की सड़कों पर दिखने लगेंगे...सवाल है कि जब एक ही पार्टी में अलग-अलग लोगों को सीएम बनने का मौका मिलता है तो क्या विज्ञापन का खर्च बचाने के लिए  कोई दूसरा रास्ता नहीं निकाला जा सकता ? मसलन पार्टी का चुनाव चिन्ह इस्तेमाल किया जा सकता है....या फिर कोई ऐसा लोगो जो ये संकेत करे की किस पार्टी की सरकार है...अगर ऐसा होता है तो बार-बार सरकारी विज्ञापन बदलने की नौबत नहीं आएगी...और किसी एक ही विज्ञापन का समय-समय पर प्रचार किया जा सकेगा...फिर सीएम नीतीश रहें या मांझी...मोदी रहे या आनंदी बेन...


Wednesday, January 28, 2015

फोन पर जवाब दिया जाएगा...


रंग सांवला, चेहरे पर छोटे-छोटे गड्ढे, दिल्ली में 10 हजार की नौकरी करने वाले सरोज के लिए लड़की देखने का कार्यक्रम तय हुआ...सरोज के माता-पिता के साथ करीब 10 लोग सोनपुर के हरिहर नाथ मंदिर पहुंचे...लड़की वाले वहां पहले से स्वागत-सत्कार के लिए तैयार थे...नास्ता पानी के बाद लड़की को देखने के लिए बुलाया गया...ऑरेंज कलर की साड़ी में लड़की रूपवान लग रही थी...सभी की नजरें लड़की पर टिक गई...लड़की असहज हो रही थी...माहौल गंभीर हो रहा था...उधर लड़के वालों में खुसर-फुसर होने लगी...तभी एक सज्जन ने लड़की का सामान्य ज्ञान चेक करने का प्रयास किया...पूछा- बिहार के मुख्यमंत्री का क्या नाम है ?...लड़की ने लालू प्रसाद यादव का नाम बता दिया...लड़की वालों ने बीच में एंट्री मारते हुए कहा- लड़की डर गई है...तभी सज्जन ने दूसरा सवाल दाग दिया और कहा कि बेटा डरने की जरूरत नहीं...पूछा- सीता बाजार जाती है...इसका अंग्रेजी अनुवाद क्या होगा ?...लड़की ने कहा- Sita go to marketलड़की के पिता का दिल बैठ गया...उसके बाद दूसरे लोगों ने भी कुछ सवाल किया जो घरेलू कामकाज और परिवार के लिए संबंधित थे...जिसका लड़की ने बड़े ही सहज ढंग से जवाब दिया...जवाब से सभी प्रभावित भी हुए...लेकिन लड़की की पटकथा लिखी जा चुकी थी...सारी औपचारिकता पूरी होने के बाद लड़को वालों ने कहा कि फोन पर जवाब दिया जाएगा...

रेलवे में ग्रुप  D की नौकरी करने वाले धीरज के लिए लड़की देखने के लिए बसंत पंचमी का दिन तय हुआ...इसके पहले ही दान-दहेज की औपचारिकता पूरी हो गई थी...लड़की देखने के लिए धीरज के परिवार वाले पटना के अगमकुआं मंदिर पहुंचे...मैरून कलर की साड़ी में लड़की बनठन कर आई...गोरा रंग, चेहरे पर थोड़ी मुस्कुराहट, आंखों में विश्वास, नजर सामने के तरफ थोड़ी सी झुकी हुई...सभी की आंखें लड़की को निहारने लगी...यहां भी खुसर-फुसर होने लगी...दबी आवाज में एक महिला ने कहा हाईट कम है...लड़कों वालों ने कहा हमलोग आपस में कुछ बातचीत करना चाहते हैं...बातचीत के लिए एक कमरा उपलब्ध कराया गया...बातचीत के बाद लड़की को सूट में देखने की फरमाइश हुई....वर पक्ष की ये फरमाइश भी पूरी की गई...लेकिन हाईट को लेकर मन में संदेह बना रहा...बात नहीं बनी...जाते हुए उनलोगों ने भी कहा- फोन पर जवाब दिया जाएगा...

रंग सांवला, बाल सफेद होने के कगार पर, नाक पर कटे का निशान, उमर तीस करीब, बैंक में क्लर्क की नौकरी...ये परिचय है पिंटू उर्फ अभिषेक का जिसके लिए लड़की देखने का कार्यक्रम तय हुआ...परिवार के करीब 10 लोग पटना पहुंचे...अभिषेक भी उनके साथ गया...लड़की देखने का कार्यक्रम एक रिश्तेदार के यहां रखा गया था...जो रिश्ते में लड़की का मामा था...मामा किशोरीलाल ने वर पक्ष के स्वागत का उत्तम प्रबंध किया था...चाय नास्ते के बाद लड़की को बुलाया गया...रंग गोरा, होठों पे मुस्कान, आत्मविश्वास से लबरेज, अनारकली सूट में सुधा आकर्षक लग रही थी...पहली नजर में ही सुधा सब को भा गई...सभी ने बारी-बारी सुधा के साथ फोटो खिंचवाया...खुशी-खुशी सब की विदाई की गई...लेकिन जाते-जाते कह दिया फोन पर जवाब दिया जाएगा... लेकिन दो दिन बाद जब लड़की के पिता अभिषेक के घर पहुंचे तो दान-दहेज को लेकर बात नहीं बनी...लड़के का पिता किसी भी हाल में 10 लाख से कम लेने को तैयार नहीं था...ऊपर से एक अपाची बाईक...बात नहीं बनी...

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजकल लड़की की शादी करना कांटों पर चलने जैसा हो गया है...हर मां-बाप का चाहता है कि उसकी लड़की को उत्तम वर, अच्छा खानदान मिले...इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहता है...उसके बाद भी किसी एक प्वाइंट पर आकर बात बिगड़ जाती है...और लड़की को बार-बार लड़कों वाले के सामने एक प्रोडक्ट की तरह पेश होना पड़ता है...जहां हर पल ये डर बना रहता है कि माल बिकेगा या नहीं...हैरानी की बात है कि लड़का काला-कलूट हो, अंगुठा छाप हो, दिनभर आवारागर्दी करता हो, लेकिन लड़की उसे भी सुशील, रूपवान और गुणवान चाहिए...और अगर लड़के ने थोड़ी पढ़ाई और जुगाड़ से कोई सरकारी नौकरी ले ली...फिर तो लड़के का बाप नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देगा...ये सूरत कमोबेश समाज के हर वर्ग की है...इसलिए ये मंथन करने का वक्त है कि इस पर लगाम कैसे लगाया जाए ? कैसे इस परिपाटी का एक बेहतर विकल्प निकाला जाए ? ताकि आगे आने वाले दिनों में लड़कियों को बार-बार शर्मिंदा नहीं होना पड़े...

Monday, January 19, 2015

मिशन 272+ का हुंकार


(27 अक्टूबर 2013)
लाखों की भीड़ के बीच जब आसमान का सूरज ढल रहा था तो बीजेपी का सूरज उग रहा था...पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के चारों ओर जो नजारा था वो ये बताने के लिए काफी था कि कांग्रेस का अंधकार रूपी बादल अब हटने वाला है...लोगों में जो उत्साह था उससे सहज ही समझा जा सकता है कि सिंहासन खाली करने का वक्त आने वाला है...मोदी के मंच पर आने से पहले हुए आतंकवादी हमले से मैदान में जरूर अफरा-तफरी का माहौल था, लेकिन मोदी के मंच पर पहुंचते ही वहां मौजूद जनसैलाब ने ये बता दिया कि महंगाई से त्रस्त जनता अब ऐसी छोटी मोटी रूकावटों से डरनेवाली नहीं है...थोड़े ही पल में मैदान का चप्पा-चप्पा लोगों से भड़ गया जो बिहार के दूर इलाके से मोदी को देखने, सुनने आए थे...ये नमो का ही जादू था जो मोदी जिंदाबाद के रूप में लोगों के मुंह से बार-बार सुनाई दे रहा था...मोदी ने भी भोजपुरी और मैथिली के सहारे बिहारियों के बीच समां बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी...बिहार के इतिहास और संस्कृति का बखान कर मोदी ने बिहारी अस्मिता को जगाने का भरपूर प्रयास किया...और लोगों ने भी उनके साथ-साथ हुंकार भरा लेकिन ये हुंकार वोट में कितना तब्दील हो पाएगा ये भविष्य में गर्व में छिपा है...भाषण का केंद्र बिंदू जरूर केंद की यूपीए सरकार थी, लेकिन बीच-बीच में मोदी ने बिना नाम लिए नीतीश कुमार को खूब लताड़ा...नीतीश कुमार पर निशाना साधने के दौरान अपने तर्क को मजबूत करने के लिए कुछ आंकड़े भी दिए जिसकी सत्यता की जांच टीवी चैनल डिबेट में साफ हो जाएगा...
   रैली के दौरान लोगों ने मोदी के राजनीतिक शैली में आए बदलाव को साफ देखा...मोदी अब मंच से मुसलमानों की बात करने लगे थे...मतलब साफ है कि वो मुसलमानों में भरोसा जगाना चाहते हैं जो बीजेपी से खार खाए रहते हैं...ये मोदी का आंतरिक परिवर्तन है या वर्तमान गठबंधन धर्म की मजबूरी ये बाद की बात है...क्योंकि मोदी भी इस बात को बखुबी जानते हैं कि मौजूदा राजनीतिक हालात में किसी भी पार्टी के लिए अकेले अपने दम पर सरकार बनाना आसान काम नहीं है...बीजेपी भलिभांति जानती है कि मिशन 272+  का सिर्फ रट लगाने से कुछ नहीं होने वाला है...2014 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर आने की स्थिति में बीजेपी को कुछ और सहयोगियो की आवश्यकता हो सकती है...इसके लिए जरूरी है कि मुस्लिम समाज को भी भरोसे में लिया जाए...
गांधी मैदान की रैली में बीजेपी ने जो नई सोच, नई उम्मीद की किरण दिखाई उसे साकार करने में जनता की भूमिका अहम होगी...पार्टी को भी सांगठनिक एकता पर जोर देना होगा और पार्टी के आंतरिक कलह को दूर करना होगा....इसका ताजा उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला का है जिन्होंने पार्टी से नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया...साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को भी गांधी मैदान से उठे हुंकार को जन-जन तक पहुंचाना होगा...तभी हुंकार रैली के जरिए जेपी के बाद एक दूसरे आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा...