दिल्ली के जंतर-मंतर पर 11 दिसंबर को एक दिन का धरना….अन्ना की माने तो ये सांकेतिक धरना है...जो सरकार को ये बताएगा कि...अगर सरकार ने शीतकालिन सत्र में जनलोकपाल बिल को पास नहीं किया....तो देश की जनता 27 दिसंबर से दिल्ली के ही रामलीला मैदान में आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है...16 अगस्त को रामलीला मैदान में अन्ना ने अनशन किया था...अनशन पर देशभर से अपार जनसमर्थन मिला...सरकार के हाथ-पांव कांपने लगे...विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हल्ला बोल दिया...मीडिया में सरकार की फजीहत होने लगी...सरकार ने अन्ना हजारे के तीन मांगों को मान लिया..विलास राव देशमुख ने सरकार का लिखित फरमान रामलीला मैदान के मंच से पढ़कर सुनाया...तब अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया..लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का आश्वासन दिया...सरकार और टीम अन्ना के बीच कई बैठकें हुई...लेकिन दोनों के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाई...इन्ही बैठकों में स्टैंडिंग कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर संसद में पेश कर दी...स्टैंडिंग कमेटी के 28 सदस्यों में से 17 ने रिपोर्ट को गलत बताया...और विरोध किया...बावजूद इसके रिपोर्ट को संसद में पेश कर दिया गया...जिसमें ग्रुप सी के कर्माचारियों और सीबीआई को मसौदे से बाहर रखा गया...प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाने के फैसले को संसद पर छोड़ दिया गया...स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी के इस रिपोर्ट के विरोध में फिर से जंतर-मंतर पर एक दिन का धरना दिया गया...
आखिर सरकार क्या चाहती है ये सरकार ही जानती है...लेकिन सरकार ये जानने की कोशिश क्यों नहीं करती कि जनता क्या चाहती है...सरकार ये मानती है कि अन्ना के साथ कुछ मुट्ठीभर लोग हैं...और सिर्फ मुट्ठीभर लोगों की बात को सरकार कैसे मान ले...अब ये सरकार को कौन समझाए कि देश की पूरी जनता जंतर-मंतर या रामलीला मैदान में इकट्ठा नहीं हो सकती...दूसरी बात देश में कुछ बेईमानों को छोड़ दें को कौन चाहेगा कि देश में भ्रष्टाचार रहे...और अब जब भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए ये सारी कवायद की जा रही है...तो सरकार को ये बात क्यों समझ नहीं आती ?...
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