बिहार नेशनल कॉलेज
से स्नातक होने के बाद राकेश आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली गया...देश के एक बड़े
मीडिया संस्थान में पढ़ाई की, फिर नौकरी...एक टेलीविजन चैनल में 3 साल तक नौकरी
की...फिर एक दिन अपने घर आने का मौका मिला...बिहार में टीचर एलिजिबिलिटी
टेस्ट यानी टीईटी का आयोजन किया गया था...जिसमें पास करने के बाद शिक्षक की नौकरी
मिलने का भरोसा जगा...इस भरोसे के साथ वो दिल्ली में एक अच्छी नौकरी को ठोकर मारकर
बिहार आ गया...यहां आने के बाद पता चला कि सिर्फ टीईटी पास होना ही काफी नहीं
है...शिक्षक बनने के लिए ट्रेनिंग की भी जरूरत है...सो राकेश ने एक सरकारी शिक्षक प्रशिक्षण
संस्थान से 2 साल की ट्रेनिंग पूरी की...लेकिन नौकरी नहीं मिली...
इन दिनों राकेश
से जब कोई पूछता है कि नौकरी का क्या हुआ ? तो झेंप जाता है...अपने
घरवालों से भी आंखे चुराता रहता है...राकेश को बहुत उम्मीद थी कि बिहार विधान सभा
चुनाव के तारीखों के एलान से पहले नौकरी मिलने की कोई सूचना मिल जाए...लेकिन ऐसा
नहीं हुआ...अब वो कुछ और काम करने या फिर दिल्ली लौटने का विचार कर रहा है...
राकेश की तरह अजीत,
संतोष, सतीश आदि कई लोग हैं जो बिहार लौटना चाहते हैं...लेकिन कोई रास्ता नहीं दिख
रहा है...इसलिए वे अपने काम में लगे हुए हैं...अब उस काम में मन लगे या नहीं लगे
कोई फर्क नहीं पड़ता...क्योंकि आमदनी का कोई और जरिया नहीं है...इसलिए हर हाल में
उस काम को करना है...उनको राकेश से सबक भी मिला है कि बिना किसी उचित व्यवस्था के
घर लौटना समझदारी नहीं है...
ऐसे में बिहार से
बाहर जाकर पढ़ाई करने वालों छात्रों पर आरोप लगते हैं कि वे अपने प्रदेश के विकास
के लिए कुछ नहीं करते... आरोप लगाने वाले कहते हैं कि वे बाहर पढ़ाई करने जाते
हैं... पढ़ाई के बाद किसी मल्टी नेशनल कंपनी में उनको अच्छी नौकरी मिल जाती
है...अच्छी नौकरी मिलने पर धीरे-धीरे प्रदेश से उनका नाता टूटने लगता है...फिर
उनको अपने प्रदेश में कई तरह की बुराईयां नजर आने लगती हैं...और एक दिन ऐसा आता है
जब वे बिहार नहीं लौटने का इरादा पक्का कर लेते हैं...
हमें इस तरह का आरोप
लगाने से पहले गंभीर चिंतन करने की जरूरत है...साथ ही अरस्तू के उस कथन पर भी
विचार करने की आवश्यकता है...जिसमें मनुष्य को सामाजिक प्राणि बताया गया है...मतलब
हर आदमी समाज में, परिवार में, अपनो के बीच रहना चाहता है...जहां उसे विचार साझा
करने, अपनी बात कहने का पूरा मौका मिले, जहां लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में हाथ
बंटाए, एक-दूसरे का ख्याल रखे...ऐसे माहौल में व्यक्तित्व का विकास समूचित रूप से
होता है...और वो विकास की ओर अग्रसर होता है...
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