‘हमर माल के ठीक से रखिहे’...ये संवाद रामायण के उस राम के
हैं...जिस रामायण में राम के अनुज लक्ष्मण अपनी भाभी के अंगों को निहारता है...और
रावण सीता को गोद में उठाकर ले जाता है...राम-रावण के बीच युद्ध में रथ की जगह ‘पीक अप’ का इस्तेमाल किया जाता
है... तो लंका को जलाने में बम-पटाखों का प्रयोग होता है...वेश-भूसा जरूर पारंपरिक
होता है लेकिन लक्ष्मण रामलीला के दौरान भी च्वींगम चबाता है, तो पुरूषोत्तम श्रीराम
रिलैक्स होने के लिए स्प्राइट की मांग करता है...
दशहरे के मौके पर अपने गांव में रामलीला का आयोजन किया गया...हर साल की तरह गांव
के बच्चों में रामलीला में भाग लेने की उत्सुकता दिखाई दी...लेकिन रामायण के
किरदार को चरितार्थ करने, उसे जीवंत करने का घोर अभाव दिखा...मतलब साफ था कि आज बच्चों
के लिए रामायण की वो बातें, वो आदर्श, वो नैतिकता बेमानी हो गई है...जिसकी लाज
रखने के लिए पुरूषोत्तम श्रीराम ने सत्ता को ठोकर मार दी...और पिता के वचन के पूरा
करने के लिए खुशी-खुशी वनवास को स्वीकार किया...भाईयों के बीच इतना प्रेम था कि
बड़े भाई के वन जाने के बाद छोटे भाई ने सत्ता लेने से इंकार कर दिया...देवर-भाभी
का रिश्ता इतना पवित्र कि लक्ष्मण अपनी भाभी सीता को भाभी मां कहते थे...
इस बदलाव के लिए सिर्फ आज की पीढी को दोष देना ठीक नहीं है...बल्कि हर वो
शख्स, समुदाय, और संस्था जिम्मेदार हैं...जिन्होंने अपने काम को ईमानदारी से नहीं
किया...उल्टे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उन आदर्शों को चोट पहुंचाने की कोशिश
की...और लगातार कर रहे हैं...इसलिए जरूरत इस बात की है कि बच्चे और युवा स्वयं इसकी
जिम्मेदारी अपने हाथ में लें...और समाज को आईना दिखाने की कोशिश करे...जरूरी नहीं
कि उनको सौ फीसदी सफलता मिल जाए...लेकिन इनता जरूर है कि समाज में बदलाव दिखेगा...धीरे-धीरे
जब ये बदलाव हर समाज में दिखने लगेगा...तो निश्चित रूप से इसका असर उन लोगों पर भी
होगा...जो निराश होकर हार मान चुके हैं...और मुकदर्शक बने बैठे हैं...मैं समाज के
उन वरिष्ठ लोगों से अपील करता हूं कि आज जरूरत मुकदर्शक बने रहने की नहीं
है...युवाओं के जोश और उर्जा को सही दिशा देने की जरूरत है, उनसे तालमेल बैठाने की
आवश्यकता है...क्योंकि परिवार, समाज और देश की तरक्की तभी हो सकती है जब
अनुभव और
उर्जा एक साथ काम करे...