Sunday, November 11, 2012
कब लौटेंगे वो पुराने दिन
Thursday, October 4, 2012
मेरी प्यारी बिटिया पिहू....
Saturday, September 1, 2012
आसान नहीं बिहार टीईटी की राह...
Wednesday, March 7, 2012
होली बोले तो हठ और हुड़दंग....
होली के एक भाग हठ पर चर्चा करने के बाद नंबर आता है हुड़दंग का...जब घर के जवान छोकरे गलियों में निकल आते है....यहां से शुरु होती है नाली सफाई और कुर्ता फड़ाई अभियान...जिससे कोई नहीं बच पाता....कोई आसानी से फड़वाता है...तो कोई होशियारी झाड़ता है....लेकिन होली के इस रंग से कोई नहीं बच पाता है.....जो जितनी होशियारी मारता है...उसकी उतनी ही फजीहत होती है....हालांकि होली का ये रंग ज्यादा देर तक नहीं रहता...लेकिन कम समय में ही फुल मस्ती होती है....जिसकी याद जेहन में रच-बस जाती है....
Saturday, February 11, 2012
बिग बी का जादू....
फिल्में किसी और हीरो की होती तो सो भी जाता था..लेकिन अमित जी की फिल्मों को छोड़ना रात को बर्बाद करने जैसा होता था..क्योंकि जैसे ही फिल्म का कोई डायलॉग सुनाई देता...मन एक बार फिर से नियम तोड़ने के लिए उकसाने लगता..उसके बाद जो जद्दोजहत होती उसमें जीत अमित जी की होती थी...अब इसे अमित जी बेजोड़ डायलॉग डिलीवरी कहे या अभिनय की अमिट छाप...लेकिन कुछ तो था जो मुझे मजबूर करता था...
Sunday, January 22, 2012
हसरत ना रही मेरे दिल की.....
हसरत ना रही मेरे दिल की रहूं दिल्ली में कुछ और साल....
यकीन मानिए दिल्ली से दिल भर गया है...दिल्ली में 5 साल बिताने के बाद भी दिल्ली रास नहीं आ रही...अब सोचता हूं गांव लौट जाऊं....लेकिन कोई इसके लिए तैयार नहीं....ना मेरे परिवार वाले और ना ही मेरे दोस्त...सिर्फ मेरे चाहने से भी संभव हो सकता है...बशर्ते कोई फुलप्रूफ प्लान हो...अगर मैं कहूं कि मेरे पास एक फुलप्रूफ प्लान है...तो क्या मेरे प्लान से मेरे मात-पिता राजी होंगे...शायद नहीं
क्योंकि वहां रहनेवालों के करामात वे लोग देख चुके हैं....फिर क्या मुझे ये ख्याल अपने मन से निकाल देना चाहिए...हरगीज नहीं....लौटना तो गांव में ही है....आज नहीं तो कुछ साल बाद सही....
तो क्या मुझे अभी कुछ दिन और मन मारकर रहना पड़ेगा...हां बेशक...और चारा भी क्या है ?
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जितने दिन यहां रहने हैं...जोश के साथ जिंदगी को जिते हुए रहें
क्यों नहीं हो सकता ?...बस दिल से कुछ चीजों को निकालना होगा...जो हमें परेशान करते हैं...कुछ चीजों से आंख फेर लेना होगा...जो मन को कचोटते हैं....फिर आराम से जी सकते हैं....क्या सचमुच ऐसा है?
नहीं ऐसा नहीं है....फिर देवसाहब के उस गीत का क्या....मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया….
क्या ये हालात के साथ समझौता नहीं होगा?...