(27 अक्टूबर 2013)
लाखों की भीड़ के बीच जब
आसमान का सूरज ढल रहा था तो बीजेपी का सूरज उग रहा था...पटना के ऐतिहासिक गांधी
मैदान के चारों ओर जो नजारा था वो ये बताने के लिए काफी था कि कांग्रेस का अंधकार
रूपी बादल अब हटने वाला है...लोगों में जो उत्साह था उससे सहज ही समझा जा सकता है
कि सिंहासन खाली करने का वक्त आने वाला है...मोदी के मंच पर आने से पहले हुए
आतंकवादी हमले से मैदान में जरूर अफरा-तफरी का माहौल था, लेकिन मोदी के मंच पर
पहुंचते ही वहां मौजूद जनसैलाब ने ये बता दिया कि महंगाई से त्रस्त जनता अब ऐसी
छोटी मोटी रूकावटों से डरनेवाली नहीं है...थोड़े ही पल में मैदान का चप्पा-चप्पा
लोगों से भड़ गया जो बिहार के दूर इलाके से मोदी को देखने, सुनने आए थे...ये नमो का
ही जादू था जो मोदी जिंदाबाद के रूप में लोगों के मुंह से बार-बार सुनाई दे रहा
था...मोदी ने भी भोजपुरी और मैथिली के सहारे बिहारियों के बीच समां बांधने में कोई
कसर नहीं छोड़ी...बिहार के इतिहास और संस्कृति का बखान कर मोदी ने बिहारी अस्मिता
को जगाने का भरपूर प्रयास किया...और लोगों ने भी उनके साथ-साथ हुंकार भरा लेकिन ये
हुंकार वोट में कितना तब्दील हो पाएगा ये भविष्य में गर्व में छिपा है...भाषण का
केंद्र बिंदू जरूर केंद की यूपीए सरकार थी, लेकिन बीच-बीच में मोदी ने बिना नाम लिए नीतीश कुमार को खूब
लताड़ा...नीतीश कुमार पर निशाना साधने के दौरान अपने तर्क को मजबूत करने के लिए कुछ
आंकड़े भी दिए जिसकी सत्यता की जांच टीवी चैनल डिबेट में साफ हो जाएगा...
रैली के दौरान लोगों ने
मोदी के राजनीतिक शैली में आए बदलाव को साफ देखा...मोदी अब मंच से मुसलमानों की
बात करने लगे थे...मतलब साफ है कि वो मुसलमानों में भरोसा जगाना चाहते हैं जो बीजेपी
से खार खाए रहते हैं...ये मोदी का आंतरिक परिवर्तन है या वर्तमान गठबंधन धर्म की
मजबूरी ये बाद की बात है...क्योंकि मोदी भी इस बात को बखुबी जानते हैं कि मौजूदा
राजनीतिक हालात में किसी भी पार्टी के लिए अकेले अपने दम पर सरकार बनाना आसान काम
नहीं है...बीजेपी भलिभांति जानती है कि मिशन 272+ का
सिर्फ रट लगाने से कुछ नहीं होने वाला है...2014 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के
रूप में उभरकर आने की स्थिति में बीजेपी को कुछ और सहयोगियो की आवश्यकता हो सकती
है...इसके लिए जरूरी है कि मुस्लिम समाज को भी भरोसे में लिया जाए...
गांधी मैदान की रैली में
बीजेपी ने जो नई सोच, नई
उम्मीद की किरण दिखाई उसे साकार करने में जनता की भूमिका अहम होगी...पार्टी को भी
सांगठनिक एकता पर जोर देना होगा और पार्टी के आंतरिक कलह को दूर करना होगा....इसका
ताजा उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला का है जिन्होंने पार्टी से
नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया...साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को भी गांधी
मैदान से उठे हुंकार को जन-जन तक पहुंचाना होगा...तभी हुंकार रैली के जरिए जेपी के
बाद एक दूसरे आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा...
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