Friday, December 30, 2011

कुछ खोया कुछ पाया...

नए साल के मौके पर सारा देश जश्न और उसके स्वागत में लगा है...इस जश्न को आप जरूर मनाए...लेकिन उससे पहले याद करें पिछले साल यानी 2011 की कुछ हसीन तो कुछ गमगीन पलों को ...क्योंकि हमने हमेशा से ही बिते हुए समय से सीख लेते हुए आने वाले कल को खूबसूरत बनाने की कोशिश की है....शुरूआत करते हैं...साल 2011 के फरवरी महीने से जब सारे देश की निगाहें क्रिकेट के विश्वकप पर थी...19 फरवरी को आखिरकार वो दिन आ गया सभी टेलीविजन स्क्रीन से चिपक गये....विश्वकप 2011 का आगाज हुआ भारत-बांग्लादेश मैच से... जिसमें भारत ने आसानी से जीत दर्ज कर ली...तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि बांग्लादेश जैसी टीम पर विजय पाने वाला देश विश्वकप खिताब पर कब्जा करेगा...सीरीज जैसे जैसे आगे बढ़ता गया लोगों की धड़कनें बढ़ने लगी...और 2 अप्रैल 2011 को वो दिन भी आ गया जो....इतिहास को दुहराने वाला था....फाइनल मुकाबला भारत और श्रीलंका के बीच था....जिन्होंने पहले भी इस खिलाब पर अपना नाम लिख दिया था....फाइनल में दोनों टीमों के बीच जबर्दस्त मुकाबला हुआ...और बाजी हाथ लगी धोनी ब्रिगेड को....धोनी के बल्ले से निकले विजयी छक्के से देशभर में खुशियों की लहर दौड़ गई.....
अप्रैल का महीना आते ही एक और बड़ी घटना हम सभी का इंतजार कर रहा था....और वो था भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल के लिए सरकार से लड़ाई...समाजसेवी अन्ना हजारे ने जनलोकपाल के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन किया...अनशन को देशभर में जबर्दस्त समर्थन मिला...ऐसा लगने लगा सरकार सशक्त लोकपाल के लिए मान जाएगी....उसके बाद बैठकों का कई दौर चला...लेकिन बात नहीं बनी और मामला फंसता गया...अन्ना हजारे ने रामलीला मैदान में एक बार फिर से हुंकार भरी...दिल्ली में विशाल जनसैलाब उमड़ पड़ा...साथ ही देशभर में मैं हूं अन्ना के शोर सुनाई देने लगे....इस जनसैलाब से सरकार घबड़ा गई...इस बार सरकार ने बकायदा लिखित आश्वासन दिया...शीतकालिन सत्र में लोकपाल बिल पास कराने का....इसी दौरान अन्ना ने जंतर मंतर पर एक दिन का अनशन किया...जो लोकपाल पर खुली बहस के लिए था...अन्ना ने मुंबई में भी तीन दिन के अनशन का एलान किया...लेकिन स्वास्थ्य कारणों से इसे दूसरे दिन ही रोकना पड़ा....उधर सरकार ने अपना एक लोकपाल बिल तैयार कर लिया...उसे लोकसभा में पास भी करा लिया...लेकिन बिल राज्यसभा में लटक गया....यानी जो सरकार चाहती थी वही हुआ...
इसी साल हमें कुछ ऐसे लोगों ने अलविदा कहा...जिनकी यादें जिनके काम हमेशा उनकी मौजूदगी का एहसास कराती रहेगी...उन्हीं नामों में एक नाम है देव साहब का...जो हमें 3 दिसंबर को छोड़कर चले गए...लेकिन उनकी जिंदादिली हमारी जिंदगी में हमेशा उर्जा भरती रहेगी...यकीनन देव साहब ने राजू गाइड के रूप में जो हमें रास्ता दिखाया...उस रास्ते पर चलना हर एक के बस की बात नहीं है....

Thursday, December 29, 2011

बाद में क्यों पहले क्यों नहीं ?

टीम इंडिया का इस तरह लड़खड़ाना कोई नई बात नहीं हैऔर जब दौरा विदेश का हो तो ये और भी आम बात लगती है...लेकिन जब कोई अपनी पिछली गलतियों से भी सीख नहीं ले तो ये बात जरूर खटकती है....आखिर हम कबतक तेज उछाल वाली पिच की बात करके मन मसोसते रहेंगे...क्यों हमारे खिलाड़ियों के लिए वैसी पिचे तैयार नहीं की जाती..क्यों बोर्ड ऐसी पिचों पर बल्लेबाजी के लिए खास प्रैक्टिस की व्यवस्था नहीं कराती...ये एक अलग मुद्दा है जो मेलबर्न जैसी ऐसी हर हार के बाद उठती है...लेकिन हमें तो हैरानी इस बात की होती है कि हमारी बल्लेबाजी क्रम को दुनिया की सबसे धांसू बल्लेबाजी मानी जाती है...फिर ये बल्लेबाजी ताश के पत्ते की तरह क्यों धाराशाई हो जाती है...

जब ये सीरीज शुरू हुआ था तो हम ऑस्ट्रेलियाई टीम को कमजोर मान के चल रहे थे...खुद ऑस्ट्रेलिया के ही पूर्व खिलाड़ियों ने भी माना कि भारत के पास इस सीरीज को जीतने का बहुत अच्छा मौका है...लेकिन पहले टेस्ट में नतीजा कुछ औऱ निकला..हम मेलबर्न टेस्ट हार गए वो भी बुरी तरह..हमारे जिन गेंदबाजों की कहीं चर्चा नहीं होती उन्होंने कमाल कर दिया...हमारे गेंदबाजों ने एक अच्छा प्लेटफॉर्म तैयार करके दिया... जहां से हम जीत सकते थे...लेकिन ऐसा नहीं हुआ...क्योंकि हमारी टीम तो हमेशा से वापसी करने में विश्वास रखती है...एक बड़ी हार के बाद टीम का कैप्टन कहता है कि खेल अभी खत्म नहीं हुआ है..हम वापसी करने का माद्दा रखते हैं....ऐसा नहीं है कि हम वापसी नहीं कर सकते..या हमने वापसी नहीं की है...लेकिन सवाल है कि हम पहले से ही शिकंजा क्यों नहीं टाईट करके रखें..जिससे विरोधी टीम में खलबली मच जाए....

Saturday, December 10, 2011

सरकार की जिद या जनता की मजबूरी

दिल्ली के जंतर-मंतर पर 11 दिसंबर को एक दिन का धरना.अन्ना की माने तो ये सांकेतिक धरना है...जो सरकार को ये बताएगा कि...अगर सरकार ने शीतकालिन सत्र में जनलोकपाल बिल को पास नहीं किया....तो देश की जनता 27 दिसंबर से दिल्ली के ही रामलीला मैदान में आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है...16 अगस्त को रामलीला मैदान में अन्ना ने अनशन किया था...अनशन पर देशभर से अपार जनसमर्थन मिला...सरकार के हाथ-पांव कांपने लगे...विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हल्ला बोल दिया...मीडिया में सरकार की फजीहत होने लगी...सरकार ने अन्ना हजारे के तीन मांगों को मान लिया..विलास राव देशमुख ने सरकार का लिखित फरमान रामलीला मैदान के मंच से पढ़कर सुनाया...तब अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया..लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का आश्वासन दिया...सरकार और टीम अन्ना के बीच कई बैठकें हुई...लेकिन दोनों के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाई...इन्ही बैठकों में स्टैंडिंग कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर संसद में पेश कर दी...स्टैंडिंग कमेटी के 28 सदस्यों में से 17 ने रिपोर्ट को गलत बताया...और विरोध किया...बावजूद इसके रिपोर्ट को संसद में पेश कर दिया गया...जिसमें ग्रुप सी के कर्माचारियों और सीबीआई को मसौदे से बाहर रखा गया...प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाने के फैसले को संसद पर छोड़ दिया गया...स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी के इस रिपोर्ट के विरोध में फिर से जंतर-मंतर पर एक दिन का धरना दिया गया...

आखिर सरकार क्या चाहती है ये सरकार ही जानती है...लेकिन सरकार ये जानने की कोशिश क्यों नहीं करती कि जनता क्या चाहती है...सरकार ये मानती है कि अन्ना के साथ कुछ मुट्ठीभर लोग हैं...और सिर्फ मुट्ठीभर लोगों की बात को सरकार कैसे मान ले...अब ये सरकार को कौन समझाए कि देश की पूरी जनता जंतर-मंतर या रामलीला मैदान में इकट्ठा नहीं हो सकती...दूसरी बात देश में कुछ बेईमानों को छोड़ दें को कौन चाहेगा कि देश में भ्रष्टाचार रहे...और अब जब भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए ये सारी कवायद की जा रही है...तो सरकार को ये बात क्यों समझ नहीं आती ?...

Monday, November 14, 2011

मुझे भी गुस्सा आता है...

राहुल गांधी को यूपी में जाने पर गुस्सा आता है.क्योंकि यूपी इस समय सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है....इसलिए नहीं कि वहां विकास नहीं हुआ है...भ्रष्टाचार का बोलबाला है...अपराधी बेलगाम हो चुके हैं...रोजगार के अच्छे विकल्प नहीं है....बल्कि इसलिए कि वहां विधानसभा चुनाव होने वाला है...इसलिए सत्ता के बाहर के तमाम राजनीतिक पार्टियों को ऐसा लगता है कि यूपी का हाल बेहाल है....एक पल के लिए राजनीतिक पार्टियों की बातों को सच मान भी ले तो एक सवाल उठता है कि जब राज्य में चुनाव नहीं होते ...तो क्यों ये बदहाली उनको नजर नहीं आती ? ऐसा में राहुल कहते हैं कि उनको यूपी का गुस्सा देखकर गुस्सा आता है...तो मैं कहना चाहुंगा कि जब महंगाई की मार देश की जनता पर पड़ती है..पेट्रोल के दाम में बेतहासा वृद्धि होती है...सरकार में शामिल मंत्री करोड़ों रूपये गबन कर जाते हैं...तब राहुल को गुस्सा क्यों नहीं आता ?

हमारे नेताओं के ऐसे बयान से मुझे भी गुस्सा आता है जब हमारे देश के जिम्मेदार नेता सच से मुंह मोड़कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश करते हैं.....एक बात यहां क्लीयर कर देना चाहता हूं कि मैं यूपी के विकास को कोई सर्टिफिकेट नहीं दे रहा...सिर्फ इस सवाल का जवाब चाहता हूं कि किसी राज्य की बदहाली हमारे नेताओं को चुनाव के आने पर ही क्यों दिखाई देता है...क्या इसलिए कि वे आज भी मानते हैं कि अपनी चिकनी चुपड़ी भाषणों से जनता को बड़गला सकते हैं...हमारे नेता आज भी अगर ऐसा मानते हैं तो बिहार और प. बंगाल के विधानसभा चुनाव से सबक लेना चाहिए...जहां लोगों ने नेताओं की बातों में आए बगैर विकास के लिए वोट दिया...और उसका असर वहां दिखाई दे रहा है...

Friday, October 28, 2011

मेरा पहला करवा चौथ

कुछ हिन्दी फिल्मों का असर था तो कुछ बीबी से प्यार....इस साल मैंने भी करवा चौथ का व्रत रखने का फैसला किया...संयोग से दिन भी शनिवार का था..जिस दिन ऑफिस में मेरा विकली ऑफ होता है...लेकिन दीपावली के पहले यही एक दिन था जब मैं घर की सफाई भी कर सकता था...सो मैंने पूरे घर की सफाई की...और जो भी रद्दी निकला उसे लगे हाथ बेच भी दिया...रद्दी बेचने से 180 रुपये की आमदनी भी हो गई....उसके बाद जब शरीर पूरी तरह थक चुका था तो आराम मैंने आराम करने की सोची....टीवी ऑन किया और फिल्म देखने लगा...फिल्म थी अंखियों को झरोखे से....बेहद रोमांटिक...मैं फिल्म देखने में मशगुल...वक्त का पता भी नहीं चला...शाम हो गई....नहाने के बाद बाहर जाने का फैलसा किया...लेकिन दीदी (मकान मालकिन) ताला लगाकर अपने घर जा चुकी थी...मैंने थोड़ी देर इंतजार किया...सोचा थोड़ी देर में आ जाएंगी...काफी देर हो गये...ताला नहीं खुला...मैंने संतोष को फोन किया...लेकिन वो आज ऑफिस में देर तक रुक गया था...फिर विनोद को फोन लगाया...लेकिन उसका फोन नहीं मिल पाया....थक हार कर बीबी से बात करने का फैसला किया...मुझे नहीं पता था कि करवा चौथ करने से क्या है...पर आज अपनी बेगम के लिए बहुत प्यार उमर रहा था...मन बहुत खुश था...नीता से बात करने के बाद मैंने बाहर के एक शख्स को चाभी दी...शाम को संतोष भी रुम पर आया...मैं जब खाना बना रहा था उसी दौरान संतोष ने बताया चांद तो निकल चुका है...मैं चांद को देखने छत पर गया...और आसमान के चांद को देखने के बाद अपनी चांद को मोबाइल फोन में देखा और फिर बात की...आज का दिन बहुत अच्छा रहा...आज मैंने जो फिल किया वो लाजवाब था...ऐसा मैं बार बार फिल करना चाहता हूं..

Saturday, July 16, 2011

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा.....

अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई...दिल्ली के जंतर मंतर पर अनशन किया...अनशन को देशभर से समर्थन मिला...मीडिया ने भी अन्ना हजारे का साथ दिया....अनशन की वजह से सरकार को घुटने टेकने पड़े...सरकार ने एक सशक्त लोकपाल बिल लाने का वादा किया...सरकारी पक्ष औऱ सिविल सोसायटी के बीच कई दौर की बातचीत हुई....लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला...अन्ना की नेकनियती पर सवाल उठने लगे...कहा जाने लगा कि अन्ना की इस मुहिम को संघ का समर्थन मिल रहा है....इससे बौखलाए अन्ना हजारे ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी....
भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी के आंदोलन की एक और कहानी उत्तराखंड के देहरादून में लिखी जा रही थी...दरभंगा के एक स्वामी निगमानंद ने देहरादून में अवैध खनन का विरोध किया...क्योंकि इसकी वजह से गंगा का अस्तित्व खतरे में था...स्वामी निगमानंद ने भी लगातार अनशन किया...पूरे 74 दिनों तक....इस अनशन ने निगमानंद को देहरादून एक अस्पताल में पहुंचा दिया...यहां अस्पताल में निगमानंद की सूध किसी ने नहीं ली...मीडिया की नजरों से भी स्वामी का आंदोलन बचा रहा....
भ्रष्टाचार से जुड़ा एक और आंदोलन स्वामी रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में शुरू किया....अन्ना के अनशन से डरी सरकार ने रामदेव को मनाने की कोशिश की...सरकार के चार मंत्री अन्ना से मिलने एयरपोर्ट पहुंच गये...लेकिन स्वामी रामदेव ने 4 जून को अनशन शुरू कर दिया...लेकिन दिल्ली पुलिस ने अनशन पर डंडा चला दिया...रामदेव को देहरादून जाना पड़ा....मीडिया ने स्वामी रामदेव का पीछा किया...और पहुंच गये उसी अस्पताल में जहां स्वामी निगमानंद का इलाज चल रहा था....यहां से स्वामी निगमानंद की मीडिया ने सूध ली..फिर तो निगमानंद का हाल चाल पूछने वालों का जमावड़ा लगने लगा...लेकिन इसी दौरान निगमानंद ने दम तोड़ दिया....यहां देश के नेताओं सहित मीडिया ने भी माना कि उनसे भूल हुई है...निगमानंद की आवाज सुनी जानी चाहिए थी....
निगमानंद की आवाज अभी भी सुनी जा सकती है...स्वामी निगमानंद की लड़ाई को आगे बढ़ाके....क्योंकि उत्तराखंड में अवैध खनन का काम बदस्तूर जारी है....यहां अन्ना हजारे को मोर्चा संभालना चाहिए...और अवैध खनन को रोकने के लिए अनशन करना चाहिए...क्योंकि आज अन्ना को देशभर में पहचान मिली है...आज अन्ना की बातें सरकार में शामिल बहरे नेता भी सुनने लगे हैं....मेरा मानना है कि ऐसा करने से अन्ना के उन विरोधियो की जुबान पर लगाम लगेगी....जो अन्ना पर संघ के इशारे पर चलने का आरोप लगाते हैं.....और सबसे बड़ी बात कि एक सार्थक काम को उसके मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है......


Saturday, July 9, 2011

मेरी प्यारी सी मंजिल

समय इन दिनों काफी तेजी से निकल रहा है....ऑफिस के काम को निपटा के घर जल्दी पहुंचने की जल्दी...ऑफिस के गेट से बाहर निकलते ही...हाथ की उंगलियों और कदमों के बीच रेस होन लगता है...हाथ की उंगलियां मोबाइल फोन के कीबोर्ड पर और कदम रास्ते पर सरपट दौड़ने लगते हैं...कदम तो थोड़ी देर बाद रुक जाते हैं...लेकिन हाथ की उंगलियां बदस्तूर जारी रहती हैं...बस में बैठने के बाद ड्राइवर पर ही ध्यान लगा रहता है...ड्राइवर का ब्रेक लगाना मानो दिल पर धक्का देता है...यही समय होता है जब नींद मुझे अपनी बांहों में लेने को बेकरार ....और शायद मैं भी उसके आगोश में जाने को तैयार.....25 से 30 मिनट बस में बिताना ऐसा लगता है मानो घंटो से सफर में हो....जैतपुर मोड़ उतरने के बाद थोड़ी राहत मिलती है...अब गुस्सा ड्राइवर पर नहीं आता...ट्रैफिक नियम को ताक पर रखकर गाड़ियों की आवाजाही पर गुस्सा आता है...शायक वे भी अपनी किसी मंजिल पर जल्दी से जल्दी पहुंचना चाह रहे हो....मोड़ से न्यूज पेपर खरीदने में मुश्किल से 2 मिनट का सयम बर्बाद होता है....लेकिन वो 2 मिनट भी मेरी मंजिल में बाधा नजर आता है...पेपर खरीदना इसलिए जरूरी होत है...क्योंकि इसमें मेरी मंजिल की मर्जी शामिल होती है...आखिरकार मुझे मेरी मंजिल से मुलाकात होती है और बेकरार दिल को करार मिलता है....मेरी ये मंजिल किसी और मंजिल से इसलिए अलग होता है क्योंकि मैं रोज इस मंजिल तक पहुंचने का रास्ता तय करता हूं और पहुंचता हूं

Tuesday, March 15, 2011

होली की एक संगीतमय संध्या

होली की तैयारियां जोरो पर है...सभी इसके स्वागत की तैयारियों में लगे हैं...और जब होली का स्वागत गीतों से हो....और उसमें भी वैसे गीतों से जिसकी बोल और मिठास बृज की होली की याद दिलाने लगे तो कहना ही क्या.....ऐसी ही गीतों भरी शाम थी 14 मार्च की....अर्जून नगर के एक पुस्तकालय के प्रांगण में संगीत संध्या का आयोजन हुआ था...मकसद था दिलों में प्यार जगाना....होली मिलन की इस संगीत संध्या में बच्चे बुढ़े और महिलायें सभी शामिल थे....महफिल ऐसी जमी की सभी ने हिलने का नाम लिया...गायक कलाकार थे उज्जवल नागर....जिनकी मधूर आवाज ने लोगों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया...आवाज में इतनी मिठास और सादगी थी कि मुख्य अतिथि के तौर पर आईं किरण वालिया ने भी once more की फरामाइश कर दी...फिर तो हर बोल के साथ तालियों की आवाज ऐसे गुंजन लगी मानो तबले के साथ घुंघरू की आवाज....प्रो. किरण वालिया ने भी उज्जवल नागर की भूरी भूरी प्रशंसा की...उन्होंने कहा कि जहां आज पॉप गानों से मन उब जाता है दिल घबराने....ऐसे में शास्त्रीय संगीत मानों ह्रदय में उतरता हो...सुकून इतना कि जी ना भरे...खुशी इतनी कि मुस्कुराहट थमने का नाम ना ले...और मस्ती इतनी कि लोग वहां से उठने का नाम ना ले.....