03 अक्टुबर 09
बचपन में मैं एक कव्वाली गाया करता था –हम घर से चले किताब ले स्कूल का रास्ता भूल गये। आज मैं दीदीसी की शादी गया। वहां का इंतजाम देखकर मैं स्तब्ध था। शादी का ऐसा भव्य सेट देखकर मैं पहली बार देख रहा था। बचपन की वो कव्वाली मुझे फिर याद आई। सभी अपने अपने तरीके से शादी का आनंद ले रहे थे। कोई मस्ती में भंगड़ा कर रहा था कोई मेहमानो का स्वागत को तैयार था। कोई खाने पीने की व्यवस्था कर रहा था तो किसी पर शादी को सुचारू रूप से कराने की जिम्मेदारी थी ।
मैं गजेन्द्र के साथ फोटोग्राफी कर रहा था। रूबी के बाउ जी भी हमारे साथ थे। पहली सबसे अच्छी बात बाउ जी को दीदीसी से मिलाने की थी जो मैं भूल गया। दूसरी अच्छी बात जीजीसा से मुलाकात करना याद नही रहा। कव्वाली यहीं पूरी नही हुई। शादी हो रही थी मंत्रोचारण पढ़े जा रहे थे। सिन्दूर दान का समय आया और मैं फोटो लेना भूल गया। विधिवत शादी संपन्न हुई दूल्हा दूल्हन ने खाना खाया। दीदीसी की विदाई का वक्त आया और मैं वहां नही था। -- Akash Kumar
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नारायण नारायण
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा आपने .. हिन्दी चिट्ठा जगत में इस नए चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है .. उम्मीद करती हूं .. आपकी रचनाएं नियमित रूप से पढने को मिलती रहेंगी .. शुभकामनाएं !!
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