Friday, September 25, 2009

एक दिन ऐसा भी.........

हर दिन नया, हर पल खास और रोज एक नया एहसास होता है । आज ऐसा नहीं था । दिनभर निराश उदास था । आज का पूरा दिन ऐसे ही गुजर गया और शाम हो गयी ।बिस्तर पर पड़ा कुछ सोच रहा था । सोच रहा था भारतीय जनसंचार संसथान में आने के बाद चुनौतियां बढ़ गयी हैं और हमसे लोगों की अपेक्षायें भी बढ़ गयी हैं ।क्यों न बढें देश का सबसे बड़ा संस्थान जो ठहरा ।यही सोचते हुए मेरी आंख लग गयी, मैं स्वप्निल हो गया।
निंदिया रानी बाहें फैलाये मुझे बुला रही थी और मैं अनायास उसकी ओर खींचा जा रहा था । वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी । आसपास फैली सफेद बर्फीली सतह जन्नत जैसा लग रहा था । वातावरण में व्याप्त हवाओं की खुश्बु मुझे उन्मादित कर रहा था। उस अप्सरा से लिपटने की चाहत भी बढ रही थी । पांव उसकी ओर तेजी से बढने लगे। धड़कन की आवाज साफ सुनायी पड़ रही थी ।
चांदनी रात थी। चांद बिल्कुल माथे पर आ चुका था । आधी रात में वक्त ठहर सा गया था । मैं निंदिया रानी से कुछ ही दूरी पर था ।अब अपनी अप्सरा को करीब से देख सकता था । सफेद लिबास में खड़ी उस उर्वशी के गले में शोभायमान चंद्रहार अपनी आभा बिखेर रहा था ।रेशमी बालों में लगे छोटे छोटे सितारें चांद को मुंह चिढा रहे थे ।दाहिने हाथ के गुलाबी कंगन में भी जगह जगह मोती जड़े थे जिसकी सुन्दरता बायें हाथ को रिझा रही थी ।चेहरे पर जो तेज, जो चमक जो रूमानियत थी वह विरले ही कन्याओं में दिखता है। आंखों में जो चमक जो नविनता का एहसास था वह अनुठा था शायद एक श्रृंगारिक कवि ऐसी ही सुन्दरता की कामना करता है। अब मैं निंदिया रानी की बाहों में मखमली वस्त्रों और अप्सरा के कोमल स्पर्श को महसुस कर रहा था । कानों में एक ही गीत के स्वर सुनाई पड़ रहे थे -------- ये कहां आ गये हम यूं ही साथ साथ चल के

1 comment:

  1. bahut acha likha hai aapne,aapke is blog ko pdkr main bhi aapke is sapne mei kho gyi aapni is imagination ko bnaay rkhe.

    KARUNA

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