Wednesday, March 3, 2010

जेएनयू की हुड़दंग वाली होली


कुछ चीजें होती है जिन पर यकीन करने का मन नहीं करता लेकिन करना पड़ता है। होली वाले दिन जेएनयू कैम्पस का भी नजारा कुछ ऐसा ही था जिस पर भी आसानी से भरोसा नहीं हुआ। लेकिन ये खयाल आया कि जब होली का मौसम हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है। मस्ती में डूबे युवक-युवतियों ने जो धमाल किया उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती थी। रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे और हाय ये होली उफ ये होली जैसे गीतों पर थिरकते लोगों को कैमरे में कैद करने का मौका कोई भी चुकना नहीं चाहता था। लाल पीले काले नीले रंगों से सराबोर छात्रों को देख कर कोई भी नहीं कह सकता था कि ये जेएनयू के वही छात्र है जो भारतीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय संबंध और समाजवाद पर लंबे लंबे भाषण देते हैं रंग-बिरंगे गेटअप में झुमते नाचते लड़के-लड़कियों में अंतर करना मुशिकल था। किसी ने कुर्तो भाड़ रखे थे तो कोई उन फटे कपड़ों का डिजायन बनाये। कोई भांग पी रहा था तो किसी ने रम पी रखी थी। किसी के हाथ पिचकारी थी तो किसी के हाथ गुलाल की पोटली। यहां पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों के लिए यह अद्भूत नजारा होता है। इस उमंग और मेल-मिलाप के त्योहार का कोई भी मौका चुकनी नहीं चाहते। हमेशा दूर से ही पहचाने जाने वाले इन छात्रों को पहचानना मुश्किल था। सभी आज भारतीय रंग में घुल गये थे। मस्ती के इस अनूठे अवसर को वे लगातार कैमरे में सहेजते रहे। होली के मशहुर गीतों पर झुमते इन युवाओं को रोकना किसी के वश में नहीं था। सारे झीझक और सभी बंदिशे तोड़कर वे दिखा देना चाहते थे कि भारत को यूं ही युवाओं का देश नहीं कहा जाता। यहां छात्रों में जो उर्जा लाजवाब थी। भविष्य की सारी चिंताये भूलाकर आज सिर्फ नाचना थिरकना चाहते थे। ऐसा भी नहीं था कि इन छात्रों में मस्ती के आलम में सारी मर्यादाएं तोड़ दी हो। उनको नशे में भी अपने हद में थे। नफरत कटुता और इस तरह की सारी शिकायतों को भूलाकर लोग एक दूसरे के गले के गले मिल रहे थे। मन के अवसादों को भूलाकर उनका चेहरा चमक रहा था। होली की ऐसी सुन्दरता को जेएनयू के ही छात्र बनाये रख सकते थे जिन पर देश की कई उम्मीदें जुड़ी होती है।
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2 comments:

  1. वाह होली का शब्द चित्र बहुत ही अच्छा लगा।

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