Wednesday, February 18, 2015

यहां सब ठीक है !


बचपन से ही हमें बताया जाता है कि विद्यालय शिक्षा का मंदिर है...यहां बच्चे को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की कोशिश की जाती है...गुरु का कर्तव्य होता है कि वे छात्रों को सदाचारी बनने की शिक्षा दें...यही कारण है कि समाज में गुरु का ऊंचा स्थान है...विद्यालय के प्रति लोगों में मन में एक भरोसा होता है...स्कूल में भेजकर मां-बाप निश्चिंत हो जाते हैं कि उनके बच्चे बुराई के रास्ते पर नहीं चलेंगे...लेकिन वास्तव में क्या ऐसा है ?
बेशक नहीं ! वजह कई हैं...पहली वजह है आज का बाजारीकरण...बाजारीकरण ने हमारे समाज के नैतिक मूल्यों पर कड़ा प्रहार किया है...आज हमें सामाजिक मर्यादाओं से ज्यादा नफा-नुकसान की चिंता होती है...हम किसी भी काम में, किसी भी मौके पर अपना हित साधने के लिए तत्पर रहते हैं...यहां तक की, किसी की मईयत में भी हम साफ मन से नहीं जाते हैं...जिसका नतीजा है कि आज हमारे आस-पास का हर आदमी शक के घेरे में है...विश्वास टूट रहा है...भाई का भाई पर से, पिता का बेटे पर से, पति का पत्नि पर से...आचरण दूषित हो रहा है...हर एक के मन में छल-कपट घर कर रहा है...ऐसे में एक शिक्षक कैसे इस माहौल से परे हो सकता है ?
दूसरी वजह है सरकार की नीति...दोपहर का भोजन कार्यक्रम ने शिक्षकों का पूरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया...कल तक जो टीचर छात्रों का मूल्यांकन करता था, आज वह चावल-दाल का हिसाब लगाने में व्यस्त है...सरकार ने सोचा कि भोजन के लालच में बड़ी संख्या में बच्चे विद्यालयों का रूख करेंगे...और शिक्षा के स्तर में सुधार होगा...ऐसा हुआ भी स्कूल के रजिस्टर ने ताबड़-तोड़ सैकड़ा ठोंक दिया...कहीं-कहीं तो छात्रों की संख्या ने 150 का आंकड़ा भी पार कर लिया...पर शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ...उधर लालच ने शिक्षकों को भी नहीं छोड़ा...अब हर टीचर इस ताक में रहने लगा कि चावल-दाल में से दो-चार किलो का जुगाड़ कैसे लगे...
तीसरी वजह है भ्रष्टाचार...आज ये एक ऐसा हथियार जिसके दम पर गलत से गलत काम को भी खूबसूरती से अंजाम दिया जा रहा है...इस धारणा को बल मिल रहा है कि अगर जेब में पैसा है तो किसी से डरने की जरूरत नहीं है...क्योंकि सब को खाने की गंदी आदत पड़ चुकी है...बावजूद इसके कि देश में आजकल खाने की सख्त मनाही है...बीईओ यानी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी स्कूल में निगरानी करने आता है...स्कूल में कई शिक्षक अनुपस्थित मिलते हैं, मीड डे मिल में गड़बड़ी होती है, साफ-सफाई नहीं होती, लेकिन ऑफिस में ही सबकुछ मैनेज हो जाता है...बीईओ अपने सीनियर को रिपोर्ट कर देता है – यहां सब ठीक है

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