Monday, May 3, 2010
हम कैसा समाज बना रहे हैं..
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का एक नारा है.....सब पढ़े सब बढ़े.....बचपन में भी एक बात हर बच्चे को पता थी......पढ़ेंगे-लिखेंगे बनेंगे होशियार.......गिनती के सबक की तरह ये बात हर बच्चे दुहराते रहते थे.......मां-बाप के मन में भी ये बात रहती थी कि पढ़लिख कर हमारी औलाद देश समाज और परिवार का नाम रौशन करेगा.......बात साफ है कि शिक्षा से लोगों की उम्मीदें जुड़ी रहती है.....उन्हे लगता है कि शिक्षा से एक नये साकारात्मक समाज का निर्माण होगा.....समाज में एक नई सोच नये विचार का आगमन होगा.....समाज की जो पुरानी मानसिकता है जो रुढ़िवादी विचार है उन्हे चुनौती मिलेगा....लेकिन ये सारी कवायदें झूठी साबित हो जाती है जब एक आधुनिक समाज में प्रगतिशील पत्रकार की हत्या कर दी जाती है......वजह मामुली होती है.....एक पत्रकार जो महिला भी है......उसे समाज ने फैसले लेने का हक नहीं दिया है.....अगर दिया भी है तो उसका एक दायरा तय कर दिया गया है.....निरूपमा पाठक झारखंड के एक छोटे से जिले से दिल्ली आई.....देश के एक बड़े मीडिया संस्थान में पढ़ाई की.....एक बड़े मीडिया हाउस में नौकरी की.....यहां तक सबकुछ ठीक चल रहा था.......समस्या वहां से शुरू हुई जब उसे एक लड़के से प्यार हो जाता है...और वह शादी का अहम फैसला कर लेती है.....इस फैसले ने मां-बाप और परिवार वालों की खोखली सत्ता को हिला कर रख दिया.......बेटी का ये फैसला उन्हे इतना नागवार लगा कि परिवार वालों ने उसे सदा मौत की नींद सुला दिया.......ये सब उन्ही लोगों ने किया जिन्होंने कभी निरूपमा को लोरी गाकर सुलाया होगा......मानव संवेदना को हिला देने वाली ऐसी घटना एक ऐसे परिवार में होती है......जिसमें लोग पढ़े-लिखे है समाज में प्रतिष्ठा है..... निरूपमा इकलौती नहीं है जिसे समाज ने अपनी झूठी शान के लिए मौत की नींद सुलाया है..... ऐसी घटनायें हमेशा ये सवाल छोड़कर जाती है कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं.........फिर हमें जरूर इस बात पर ध्यान देनी चाहिए कि शिक्षा का स्वरूप क्या होगा और इसका मतलब क्या होगा.....तभी हम कह सकेंगे पढ़ेंगे-लिखेंगे बनेंगे होशियार ......
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भ्रष्टाचार ने हर अच्छी चीज को इस समाज से ख़त्म कर अराजकता और कुतर्क के चलन को बढ़ावा दिया है /अच्छी प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद /
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