Thursday, September 24, 2009

एक बचपन ऐसा भी.............

सुबह पांच बजते ही एक लड़का हाथ में झोला लिये नदी किनारे चल देता है।आंख मीचते हुए उसके कदम तेजी से बढ़ते हुए गंगा तट पर पहुंचता है। वह रोज वहां दातुन बेचने जाता है। 12 साल का वह बच्चा पिछले कई साल से यह काम कर रहा है। उसने कभी स्कूल का मुंह नही देखा। किसी ने उसे गिनती नही सिखायी लेकिन वह पैसे को पहचानता है। गंजी और हाफ पैंट में उसका दुबला शरीर उसकी दशा को बखुबी बयान करता है। अपने पास वह एक झोले के अलावा एक गमछा भी रखता है जिसमें वह कभी टिकोला और टमाटर तोड़ लाता है। गांव में किसी भी मजील(शवयात्रा) में जाना नही भूलता। ऐसा करने का एक लालच इतना ही होता है कि उसे वहां लाई और बताशा मिल जाता है खाने को। कई बार उन लाईयों और बताशे को घर भी लाता है। इसे पाकर उसकी बहन बहुत खुश होती है।जीतू और उसकी बहन मंगला के खाने के बाद थोड़ा हिस्सा उसके बाप जग्गू को भी मिल जाता है।
झोला में वह नीम और बबूल का दातुन रखता है।सुबह नौ बजे तक वह दातुन बेच चुका होता है।उसके बाद वह बगीचे की ओर चल देता है दातुन तोड़ने। अब तक उसे अन्न का एक दाना भी नसीब नही हुआ होता। जिस दिन बिक्री अच्छी होती है उस दिन वह लिट्टी खा लेता है। बगीचे से घर लौटते लौटते 11 बज जाते है। यह समय उसके जलपान या भोजन का होता है।जीतू और मंगला दोनों साथ में ही खाना खाते है ।खाना बनाने का काम मंगला का होता है। जीतू का बाप जग्गू दारू बेचने का काम करता है। कई बार जीतू को भी दारू बेचने जाना पड़ता है।अपने पिता के मार से वह भलिभांति परिचित है इसलिए कभी काम करने से इंकार नही करता।
सुबह के समय जब उसकी उसकी उमर के बच्चे नहा धोकर स्कूल जाता है जीतू को काम करना पड़ता है । सर्दियों में जब अमीरों के बच्चे रजाई में लिपटे दूध और ब्रेड खा रहे होते है जीतू ठिठुरने के लिए घर से निकल जाता है।सर्दियों में भी उसके पास एक पुरानी पतली चादर के सिवा कुछ नही होता । पैर में चप्पल होता है जिसे उसका बाप भी कभी कभी पहन लेता है । काला शरीर, चेहरे पर मासुमियत, आंखों में सपने बातों का धनी, मिलनसार यही उसकी खासियत है ।उसी गांव में ऐसे भी लोग है जिनके पास लाखों की सम्पत्ति जिसके बच्चे शहर के महंगे स्कू्लों में पढ़ते है ।उनके बच्चों के जेब का खर्चा जितना होता उतना जीतू का बाप महिने में नही कमाता । गांव के लोग एक होने का दम भरते रगते है लेकिन जब मदद की बात आती है सभी अपने पांव पीछे खींच लेते है ।हम अक्सर इसके लिए अपनी सरकार को दोष देते है और अपने सामाजिक कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेते है । देश बड़ा है देश की समस्यायें बड़ी है ऐसे में सिर्फ सरकारी प्रयास से समस्या का समाधान नही होने वाल । जरूरत है हमारे युवा हाथों एकजुट होने की ।यही एक मात्र विकल्प है हमारे पास । इस मुहिम में मै आपके साथ हूँ................................

2 comments:

  1. It should be the duty of every Indian.that is if every humanbeing will think so then every problem will be solved
    its exclent feeling

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  2. apne desh mai km he aise log hai jinka dhyaan aisi smsyao ki taraf jaata hai aap unme se ek hai. apni is muhim mei aap saphl ho yahi duaa hai.

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